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परमार अभिलेख यानीह दत्तानि पुरा नरेन्द्रनानि धर्मार्थ
यशस्कराणि। निमा (मा)ल्यवान्त-प्रतिमानि तानि को नाम साधुः पुनराददीत ।। [७॥] सं. १००५ माघ व (वदी) ३० २८. [बुधे] दापकोत्र ठाकुर: श्री विष्णुः राजाज्ञया लिखितं कायस्थ-गुणधरेण । स्वहस्तोयं २९. श्रीसीयकस्य ।
(३)
अहमदाबाद का सीयक द्वितीय का ताम्रपत्र
(संवत् १०२६=९६९ ई०)
प्रस्तुत अभिलेख एक ताम्रपत्र पर उत्कीर्ण है। यह सम्पूर्ण अभिलेख का केवल उत्तरार्द्ध है। पूर्वार्द्ध प्राप्त नहीं हुआ है । यह ताम्रपत्र १९२० ई० में गुजरात के खेड़ा नगर में एक अभिभाषक ने किसी ठठेरे से प्राप्त कर गुजरात पुरातत्व मंदिर अहमदाबाद में मुनि जिनविजयजी को भेंट कर दिया।
डी. वी. डिस्कलकर ने प्रो. आ. ई. ओ. कां, मद्रास, पृष्ठ ३०४ पर इसका उल्लेख किया । बाद में ए.रि. वा. म्यू, १९२३-२४, पृष्ठ १४ पर इसका उल्लेख किया। पुनः पुरातत्व नामक गुजराती जर्नल, भाग ३, पृष्ठ १४५ व आगे इसका उल्लेख किया । अन्त में ए. ई., भाग २९, १९२७, पृष्ठ १७७१७८ पर इसका सम्पादन किया। ताम्रपत्र वर्तमान में एल. डी. इंस्टीट्यूट आफ इंडोलौजी, अहमदाबाद में सुरक्षित है।
ताम्रपत्र चौकोर है जो आकार में ३५४ १९ सें. मी. है । इसका वजन १.१९८ ग्राम है। इसमें दो छेद हैं जिनमें दो कड़ियां रही होंगी। ताम्रपत्र के किनारे कुछ मोटे हैं व लेख की सुरक्षा हेतु ऊपर को मुड़े हैं । लेख प्रायः अच्छी हालत में हैं । कुछ अक्षर क्षतिग्रस्त हो गये हैं, परन्तु उनको संदर्भ में पढ़ा जा सकता है।
अभिलेख कुल १० पंक्तियों का है । अक्षरों की लम्बाई ६ सें. मी. है। परन्तु अंतिम पंक्ति के अक्षर तीन गुना बड़े हैं । वहां नरेश के हस्ताक्षर हैं । नीचे बाईं ओर कोने में उड़ते हुए गरुड़ की आकृति है। उसके बायें हाथ में नाग है व दाहिना हाथ उसको मारने के लिए ऊपर उठा है।
उत्कीर्णकर्ता ने अपना कार्य असावधानी से किया है । अक्षर न सीधे हैं न सुन्दर हैं । वे कभी बाई ओर व कभी दाहिनी ओर झुके हुए हैं।
व्याकरण के वर्णविन्यास की दृष्टि से इसमें कुछ त्रुटियां हैं । ब के स्थान पर सर्वत्र व का प्रयोग किया गया है। पंक्ति क्र. २, ४, ६ में विसर्ग के स्थान पर पूर्व अक्षर दोहरा कर दिया गया है । पंक्ति ६ व ८ में विसर्ग के स्थान पर ष का प्रयोग किया गया है। कुछ स्थानों पर अनुस्वार लुप्त हैं । पंक्ति ७ में श्लोक के तीसरे चरण में एक अनावश्यक दण्ड बना दिया गया है।
अभिलेख की भाषा संस्कृत है व गद्यपद्यमय है । ताम्रपत्र में कुल ५ श्लोक हैं । शेष अभिलेख गद्य में है।
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