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उसके स्वतंत्र शासक होने को उदयपुर प्रशस्ति ( अभिलेख क्र. के विरुद्ध सफल युद्ध कर, अपने हो गया था ।
प्रस्तुत अभिलेख से यह अनुमान होता कि सीयक द्वितीय की राजधानी मालवा में स्थित थी, क्योंकि वह योगराज पर विजय प्राप्त कर मही नदी के पूर्व की ओर बढ़ रहा था । इसका मार्ग संभवतः पंचमहाल व झाबुआ जिलों के मध्य से होकर था । गुजरात में खेटक मंडल निश्चितरूप से उसके अधिकार में था ( नव० सर्ग ११, श्लोक ८९ ) | नवसाहसांक चरित से ज्ञात होता है कि सीयक द्वितीय ने रडुपाटि के स्वामी पर विजय प्राप्त की थी । अन्य पाठ रुडपदि, रुद्रपाटि, अथवा तर्दपाटि भी है। बुलर के अनुसार रडुपाटि या रुडपदि संभवतः संस्कृत शब्द रुद्रपाटि का ही अपभ्रंश है (इं. ऐं., भाग ३६, पृष्ठ १६८ ) । तर्दपाटि पाठ श्रीकण्ठ शास्त्री का है (सों. ऐ. क. हि., भाग १, पृष्ठ ११५) । रडुपाटि के लिये निम्न तीन तादात्म्य सुझाये गये हैं:
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१.
परमार अभिलेख ध्वनित करती है । उत्तरकालीन उदयादित्य की तिथिरहित २२) से यह निश्चित हो जाता है कि वह राष्ट्रकूट खोट्टिग शासन की समाप्ति से पूर्व संभवतः ९७० ई० में पूर्ण स्वतंत्र
२.
फ्लीट का मत है कि यह शब्द रुद या रट्ट का ही अशुद्ध पाठ है । रट्ट से तात्पर्य है राष्ट्रकूट (एपि० इं०, भाग ७, पृष्ठ २१७) ।
कनिंघम के अनुसार यह रोदपादि हो सकता है जो प्रदेश डाहल मण्डल एवं मालवा के पड़ौस में स्थित था ( आ. स. रि., जिल्द ९, पृष्ठ १०४) ।
३.
के. एन. दीक्षित का सुझाव है कि रडुपाटि का स्वामी संभवतः प्रस्तुत अभिलेख का योग - राज था (एपि. इं., भाग १९, १९२७, पृष्ठ २३६ व आगे ) ।
प्रस्तुत अभिलेख से अनुमान होता है कि योगराज का राज्य मही नदी व खेटकमंडल के पश्चिम में स्थित था, क्योंकि विजय प्राप्त करने के बाद सीयक द्वितीय ने पूर्व की ओर बढ़ते हुए ही नदी के तट पर पड़ाव डाला था जहां उसने दान दिया । एक अन्य संभावना यह भी है कि योगराज गुजरात में अणहिलवाडपत्तन के चापोत्कट ( चावडा वंश) अथवा काठियावाड के चालुक्य वंश का मुखिया था । ये दोनों भूभाग कान्यकुब्ज के प्रतिहारों की प्रभुसत्ता में थे । प्रतिहारों व राष्ट्रकूटों की पारम्परिक शत्रुता सर्वविदित है । संभव है कि राष्ट्रकूटों का पक्ष लेकर ही सीयक द्वितीय ने योगराज पर आक्रमण किया हो ।
अभिलेख में खेटक मण्डल के एक शासक का उल्लेख है जो सीयक द्वितीय के अधीन था । परन्तु यहां उसके नाम अथवा वंश का कोई विवरण नहीं है। शक संवत् ८३२ तदनुसार ९१० ई० के कपडवंज अभिलेख से ज्ञात होता है ( बा. ग., भाग १, उपभाग १, पृष्ठ १२९ ) कि ब्रह्मवाक् वंश के श्री प्रचण्ड ने खेटक मंडल का राज्य राष्ट्रकूट अकालवर्ष की कृपा से प्राप्त किया था । वह हर्षपुर ( हरसोल ) में शासन करता था । अतः संभव है कि सीयक द्वितीय के खेटकमंडल में उक्त प्रचण्ड का उत्तराधिकारी शासन कर रहा हो । यदि यह सही है तो स्वीकार करना होगा कि राष्ट्रकूट नरेश अकालवर्ष ने गुजरात में अपने साम्राज्य को कुछ स्थानीय माण्डलिकों के अधीन कर दिया था जिससे वे प्रतिहारों के आक्रमणों को रोक सकें ।
अभिलेख में निर्दिष्ट भौगोलिक स्थानों में से खेटकमण्डल का तादात्म्य गुजरात में अहमदाबाद एवं खेड़ा जिलों के कुछ भागों से किया जा सकता है । मोहडवासक अहमदाबाद
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