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________________ (३१) (क्र. ६१), ओंकारेश्वर (क्र. ७६), कच्छप अवतार (क्र. ३६), कर्णश्वर (क्र. ६४), कृष्ण (क्र. ३३, ५८, ६३), कार्तिकेय (क्र. ३६, ८०), काल (क्र. २२), कुबेर (क्र. ३६, ७१), कूर्मराज (क्र. ३६), केदारेश्वर (क्र. २२), कैटभारि (क्र. ७६), गणेश (क्र. २२, ५३, ७३, ८०), गंगाधर शिव (क्र. ७६), घण्टश्वर देव (क्र. १६), चतुर्मुख मार्कण्डेश्वरदेव (क्र. ५३), चतुर्मुख ब्रह्मदेव (क्र. ५८), चामुण्ड स्वामीदेव (क्र. ५०), जम्बुकेश्वर (क्र. ७६), देवश्री वैद्यनाथ (क्र. ७१), दैत्यसूदन (क्र. ६५), नकुलीश (क्र. ६३), निम्बादित्य (क्र. ४३), नीलकण्ठदेव (क्र. ३४, ३७), प्रजापति (क्र. ३६), प्रद्योतन (सूर्य) (क्र. ७१), ब्रह्मदेव (क्र. २६, ३३, ३६, ६३, ७१, ७६), भगवान भवानिपति (क्र. ७). भट्टारकश्री नग्नदेव (क्र. १४), भुजंगराज (क्र. ३६), भैल्लस्वामीदेव (क्र. ५१), मत्स्यराज (क्र. ५८), महेश (क्र. ६३), महाकालदेव (क्र. २०, ८०), महादेव (क्र. २०, ३४, ४४, ४९, ५१, ५३, ५८), मुरारि (क्र. ३३), यमराज (क्र. ३६), राम, रामभद्र, रामचन्द्र (प्रायः सभी दानपत्र अभिलेखों में), रामेश्वर (क्र. २२), रुद्र (क्र. २२), लिम्बार्यदेव (क्र. ६३), लोलिगस्वामी देव (क्र. २८), वराह (क्र. २२, ३६, ५२, ५८), वासुकी नाग (क्र. २०), विष्णु (क्र. ३१, ४३, ५२, ५८, ६३, ७६), सुंडीर (क्र. २२), सूर्य (क्र. ४३, ४४, ५८, ५९, ६०, ७९), सोमनाथ देव (क्र. १४, २२, २९), शिवजी (क्र. २०, ३५, ४२, ४३, ५२, ५७, ६३, ८०), शेषनाग (क्र. ३६), शेष नारायण (क्र. २०, ३६), शंकर (क्र. १६, १७, ७१), शंभु (क्र. २२), हनुमान (क्र. ६३), हरि (क्र. ५१, ५८), हिरण्यकशिपु (क्र. ५८), हेरम्ब (गणश) (क्र. ७१)। अभिलेख क्र. ८० में शिव के विशिष्ट बारह नाम इस प्रकार दिये हुए हैं:--महादेव, महेश्वर, शंकर, वृषभध्वज, कृत्रिवास, कामांगनाश, देवदेवेश, श्रीकण्ठ, ईश्वरदेव, पार्वतीप्रिय, रुद्र एवं शिव । वहीं पर पंचलिगों के नाम भी दिये हुए हैं, जो इस प्रकार से हैं-अविमुक्तेश्वर, केदारेश्वर, ओंकारेश्वर, अमरेश्वर एवं महाकालेश्वर। शक्ति पूजा परमार साम्राज्य में बहुदेववाद के साथ शक्ति पूजा भी बहुत प्रचलित थी। शक्ति का अनेक रूपों में बखान किया गया है। विष्णु की शक्ति लक्ष्मी, ब्रह्मा की शक्ति सरस्वती एवं शिव की शक्ति दुर्गा अथवा भगवती कही गई है। शक्ति के दो रूप प्रचलित थे-मांगलिक एवं संहारक। दोनों रूपों में ही शक्ति में सारा संसार व्याप्त माना जाता था। अभिलेखों में विभिन्न देवियों के उल्लेख प्राप्त होते हैं जो निम्नानुसार हैं:--अम्बिका (क्र. ६३), ईशप्रिया (पार्वती) (क्र. ७१), उज्जयिनी भट्टारिका (क्र. ५), उमा (क्र. ३६), चचिका देवी (क्र. ४०), दुर्गा (क्र. ३६), भट्टश्वरी देवी (क्र. ५), महालक्ष्मी (क्र. ५१, ६५), रमा (क्र. ३६), लक्ष्मी (क्र. ३६, ४७, ५२, ५३, ५७, ५८, ५९, ६०, ६१, ६५, ७१, ७२), विद्याधरी देवी (क्र. १५), सरस्वती (क्र. २, ५, ६, ७, ५९, ६०, ६१, ६३, ६५, ७२, ७८) । लक्ष्मी का रूप मांगलिक माना जाता था । इसी प्रकार सरस्वती विद्या की अधिष्ठात्री देवी मानी जाती थी। अतएव यहाँ शक्ति से तात्पर्य दुर्गा से ही है। अपने मांगलिक रूप में वह गौरी अथवा पार्वती है जो शिव की अर्धागिनी है। परन्तु शिव के रौद्र रूप की पत्नी के रूप में वह काली, चण्डिका, अथवा चामुण्डा है। आश्विन मास में नवरात्रों में उसकी विशेष रूप से पूजा अर्चना आदि होती थी। परमार अभिलेखों में देवी हेतु मंदिर निर्माण का उल्लेख नहीं है, तिस पर भी वह सर्वमान्य थी। शिव के साथ उसका उल्लेख प्रायः होता ही है । देवी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001130
Book TitleParmaras Abhilekh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarchand Mittal, Dalsukh Malvania, Nagin J Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1979
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Society
File Size9 MB
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