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________________ परमार अभिलेख स्वदतां परदत्तां वा यो हरेत् वसुन्धरां (राम्)। विष्टायां स कृमिर्भूत्वा पितृभिः सः (सह) मज्जति ॥२६॥ षष्टि वर्षसहस्राणि स्वर्गे तिष्ठति भूमिदः । आच्छेत्ता चानुमत्ता (मन्ता) च तान्येव नरके वसेत् ।।२७॥ सर्वानेवं भाविनो भूमिपालान् भूयो भू यो याचते रामभद्रः । सामान्योऽयं धर्मसेतु पाणां काले काले पालनीयो भवद्भिः ॥२८॥ इति कमलदलाम्बु (म्बु) वि (बि)न्दुलोलां श्रियमनुचिन्त्य मनुष्यजीवितञ्च । सक ____ लमिदमुदाहृतं च बुद्धा (बुवा) न हि पुरुषः परकीर्तयो विलोप्याः ।।२९।। - इति । संवत् ४९. १३१७ ज्येष्ठशुदि ११ गुरावयेह श्री-मण्डपदुर्गे महाराजाधिराज-श्रीमज्जयम५०. देव-नियुक्तेन संधिविग (ग्र) हिक पं श्रीमालाधर-सम्मतेन । पंडितेन्द्र गवि (वी) शस्य सु(सू) नुना विदुषा स्पु (स्फु)टं । हर्षदेवाभिधेनेदं ले (लि) खितं राजशासनम् ।।३०।।। यो वेत्त्यपारं स्मृतिशास्त्रसारं गोसेक-नाम्नो वु(बु)धपुंगव शिष्यः सुधीः शाब्दि (ब्दि) क आमदेवो भूपस्य लेख्यं समशोधि तेन ॥३१।। - उत्कीर्णमिदं रु (रू) पकार-कान्हड़ेन । ५३. दूतो महाप्रधान-राजश्री-अजयदेवः । स्वहस्तोयं महाराजस्य । अनुवाद (प्रथम ताम्रपत्र-पृष्ठ भाग) १. ओं । पुरुषार्थों में सर्वश्रेष्ठ धर्म को नमस्कार । समस्त पृथ्वी के प्रतिबिंब स्वरूप भूमि को ग्रहण कर जो संसार को आनन्दित करते हैं ऐसे द्विजेन्द्र आपका कल्याण करें ।।१।। रण में हत क्षत्रियों के रक्त से व्याप्त अस्त होते सूर्य के प्रतिबिंब के समान पृथ्वी जिस दानदाता के लिये लालिमा धारण किये हुए है उस परशुराम की जय हो ।।२।। जिसने अपनी प्राणेश्वरी (सीता) की वियोगाग्नि को युद्ध में मंदोदरी के अश्रुजल से बुझाया वह राम आपको श्रेय प्रदान करे ॥३॥ भीम के द्वारा जिसके चरण अपने मस्तक पर धारण किये गये हैं, जिसने वंश को चन्द्र के समान (निर्मल) बनाया, वह युधिष्ठिर सदा विजयी हो ॥४॥ परमार कुल के सर्वश्रेष्ठ, कंस को जीतने वाले की महिमा वाला नरेश श्री भोजदेव नामक हुआ जिसने सीमाओं तक पृथ्वी को विजित किया ॥५॥ दिशाओं की गोद तरंगित होने पर जिसकी यश चन्द्रिका उदित होते ही, शत्रु नरेशों का यश कमलों के समान मुरझा गया ।।६।। उसके (पश्चात्) उदयादित्य हुआ जो सदा उत्साह में कुतुहलपूर्ण, असाधारण वीर व श्रीयुक्त था, और विरोधियों की अलक्ष्मी का कारण था ॥७॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001130
Book TitleParmaras Abhilekh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarchand Mittal, Dalsukh Malvania, Nagin J Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1979
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Society
File Size9 MB
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