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________________ (२१) राजगुरु अपने प्रतिष्ठित पद के अनुरूप राजसभा में अत्यन्त सम्मानित एवं प्रभावशाली व्यक्ति होता था। वह आवश्यकता पड़ने पर नरेश को मंत्रणा देता था। इसके साथ राजगुरु नरेश एवं राज्य की समृद्धि के लिए सदा प्रयत्नशील रहता था। अभिलेख क्र. ५९, ६० व ६५ में राजगुरु के उल्लेख प्राप्त होते हैं। महापुरोहित अथवा पुरोहित महापूरोहित साम्राज्य में धार्मिक कर्तव्यों के लिये नरेश का प्रमुख परामर्शदाता होता था। महापुरोहित वेदों एवं धर्मशास्त्रों का ज्ञाता होता था। साम्राज्य में आपत्तियों के निवारण हेतु वह मंत्र तंत्र यज्ञ हवन आदि का आयोजन करता था। वह संभवत: शिक्षा केन्द्रों का संचालन भी करता था। अभिलेख क्र. ४६ में पुरोहित का उल्लेख प्राप्त होता है । प्रशासनिक विभाग परमार साम्राज्य में केन्द्रीय प्रशासन को सदा सक्रिय बनाए रखने के लिए सारे साम्राज्य को मण्डल, विषय, भोग, पयक, प्रतिजागरणक, ग्राम समूहों तथा ग्रामों में विभाजित किया गया था। इन सभी भागों में योग्य अधिकारी नियुक्त थे। अनेक अधिकारियों के उल्लेख अभिलेखों में प्राप्त होते हैं। मण्डल परमारों के राज्य को मालवदेश कहते थे । प्रशासन की सुविधा हेतु इसको विभिन्न मण्डलों में विभाजित किया गया था। ये प्रान्तों के समान होते थे। इनके सर्वोच्च अधिकारी को महामाण्डलिक अथवा माण्डलिक कहते थे। महामाण्डलिक के उल्लेख अभिलेख क्रमांक १, २, ३८ तथा माण्डलिक के अभिलेख क्रमांक ५७ में प्राप्त होते हैं। इनके अतिरिक्त कुछ अन्य अधिकारियों के नाम भी प्राप्त होते हैं जो प्रान्तीय प्रशासन से संबद्ध प्रतीत होते हैं। इनमें अधिपति (क्र. १), अमात्य (क्र. ४३), अमात्यपुत्र (ऋ. १६), देशलिक (क्र. १८), प्रातिराज्यिक (क्र. १८), भोक्ता (क्र. १८), भोत्कार महाराजपुत्र (क्र. ८), महत्तम (क्र. १८), राजपुत्र (क्र. ४६, ७१), साधनिक (क्र. ७६) के उल्लेख प्राप्त होते हैं। ये सभी अधिकारी किसी न किसी रूप में प्रशासनिक विभागों से संबद्ध थे। ___ अभिलेखों में निम्नलिखित मण्डलों के उल्लेख प्राप्त होते हैं--अवन्ति मण्डल (क्र. ७), उपरिहाड़ा मण्डल (क्र. ६९), उपेन्द्रपुर मण्डल (क्र. ३८), खेटक मण्डल (क्र. १, २), नीलगिरि मण्डल (क्र. ५३), पूर्णपथक मण्डल (क्र. १९), मोहडवासक अर्धाष्टम मण्डल (क्र. ८), मौडी मण्डल (क्र.७१), महाद्वादशक मण्डल (क्र. ४४, ५१), व्यापुर मण्डल (क्र. ३६), विध्य मण्डल (क्र. ५७), स्थली मण्डल (क्र. १०), संगमखेट मण्डल (क्र. १६), हूण मण्डल (क्र. ६)। माण्डलिक दो प्रकार के होते थे। प्रथम, नरेश के अधीनस्थ सामन्त तथा द्वितीय, सामान्य रूप से नियुक्त माण्डलिक थे। प्रथम श्रेणी के माण्डलिक शासनकर्ता नरेश के अधीन होते हुए भी कतिपय विशेष अधिकारों का उपभोग करते थे। विषय-भोग . . मण्डलों को विषयों एवं भोगों में विभाजित किया गया था जो संभवत: जिलों के समान होते थे। परन्तु विषय एवं भोग में क्या अन्तर था सो कहना सरल नहीं है। संभवत: विषय भोग से Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001130
Book TitleParmaras Abhilekh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarchand Mittal, Dalsukh Malvania, Nagin J Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1979
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Society
File Size9 MB
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