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परमार अभिलेख
वाक्पतिराज द्वितीय (९७३-९९५ ई.) के मंत्री का नाम रुद्रादित्य था । प्रस्तुत अभिलेख के रुद्रादित्य का तादात्म्य उससे करने में कठिनाई है। प्राय: १०० वर्ष के अन्तर से उसके पौत्र श्रीहर को नरवर्मदेव के शासन काल में सामन्त के रूप में निश्चित करने में कुछ शंका होती है। अभिलेख में रुद्रादित्य का उल्लेख तो है, परन्तु उसके अधिपति वाक्पतिराज द्वितीय का कोई उल्लेख नहीं है। आगे अभिलेख का संभावित हिन्दी रूपान्तर दिया जाता है। मूल पाठ उपलब्ध नहीं है।
(संभावित हिन्दी रूपान्तर) नीलकंठदेव की आकृति सदा मेरे हृदय पटल पर अंकित रहे, और मेरे कण्ठ से नीलकंठ के अतिरिक्त अन्य कोई शब्द न निकले।
सिंधुलराज के चरण कमलों पर नरेशों के मुकुटों में जड़ित चमकने वाली मणियों की किरणों व उनके वक्षस्थलों पर लगे हीरों की चमक सिंधुलराज के चरणकमलों पर पड़ती है । अपने शत्रु पर्वतराजों को वह धूली में मिलाता है ।
उससे भोज उत्पन्न हुआ जिसने शत्रुपत्नियों को लूटा; जो अपने शत्रुओं के लिये वन में सूखे पत्तों में अग्नि के समान था। इसके उपरान्त राजा उदयादित्य हुआ। जब वह मर गया तो नरवर्मन हुआ जिसने अपने बाहुबल से विजयश्री प्राप्त की।
उसका मंत्री रुद्रादित्य संसार में पूर्ण विकसित पुष्प के समान शास्त्रों का ज्ञाता था।
उससे विद्वान महादेव उत्पन्न हुआ, व उससे श्रीहर हुआ जिसने अपने अधिपति की ख्याति में वृद्धि की । उसके अपने अधिपति के मंदिर के पास ही शुद्धधन से एक शिवमंदिर बनवाया । उसके फलस्वरूप मेरे को इस जन्म में ही पुण्य की प्राप्ति हुई है। और अत्यन्त दक्षता से इस मंदिर का निर्माण करवाया है । दक्खिन से उदीच्य देशों के मध्य वंजस्थान पर स्वधन द्वारा सूर्यग्रहण के अवसर पर यह मंदिर सवा लाख दर्भ (मुद्रा) खर्च करके बनवाया। __ संवत् ११६४ पौष पूर्णिमा ।
कदम्बपद्रक का नरवर्मदेव का ताम्रपत्र अभिलेख
(संवत् ११६७=१११० ई.)
प्रस्तुत अभिलेख दो ताम्रपत्रों पर उत्कीर्ण है जिनकी प्राप्ति अनिश्चित है। इनका प्रथम उल्लेख प्रो. रि. आ. स. इं. वे. स., १९२०-२१ पृष्ठ ५४ पर है। राखलदास बनर्जी ने इसका विवरण एपि. इं., १९२९-१९३०, भाग २०, पृष्ठ ५०५--०८ पर छापा।
ताम्रपत्रों का आकार ३२४ २१ सें. मी. है। इनमें लेख भीतर की ओर खुदा है । किनारे मोटे हैं एवं भीतर की ओर मुड़े हैं। दोनों में दो-दो छेद बने हैं जिनमें कड़ियां पड़ी थीं। ताम्रपत्र काफी भारी है। इनका वजन ८॥ किलोग्राम है।
अभिलेख २९ पंक्तियों का है। प्रथम ताम्रपत्र पर १७ व दूसरे पर १२ पंक्तियां हैं । अक्षरों की बनावट सुन्दर है। दूसरे ताम्रपत्र पर गरुड़ का राजचिन्ह है। गरुड़ के पंख फैले हैं। वह आगे झुका है एवं उड़ने के प्रयास में है। उसके दोनों हाथों में दो नाग हैं।
_ अक्षरों की बनावट १२ वीं सदी की नागरी है। अक्षरों की लम्बाई .६ से .१० सें. मी. है। नरेश के हस्ताक्षर बड़े अक्षरों में हैं। भाषा संस्कृत है व गद्यपद्यमय है। इसमें ९ श्लोक हैं। शेष
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