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________________ १५४ परमार अभिलेख ७. द्वारा भोगे जा रहे पांच हल भूमि को छोड़कर मालापुरक ग्राम में आए हुए सभी राजपुरुषों, ८. श्रेष्ठ ब्राह्मणों, पड़ौसियों, पटेलों और ग्रामीणों को आज्ञा देते हैं-- आपको विदित हो कि चरमटिका ९. ग्राम में ठहरे हुए हमारे द्वारा ग्यारहसौ बावन संवत्सर में भाद्रपद सुदि एकादशी को महाराज १०. श्री उदयादित्य देव की सांवत्सरिका (वार्षिकी) के अवसर पर रेवा व कुविलारा नदियों के संगम पर स्नान करने चर व अचर के गुरु भगवान ११. भवानीपति श्री नीलकंठदेव की सम्यक रूप से अर्चना कर संसार की असारता को देखकर, उसी प्रकार--- इस संसार का आधिपत्य आंधी में बिखरने वाले बादलों के समान अस्थिर है, विषय भोग प्रारम्भ मात्र में ही मधुर लगने वाला है, मानव प्राण तिनके के अग्रभाग पर लगे जल-बिन्दु के समान हैं, परलोक जाने में केवल धर्म ही सखा है ।।३।। धूमते हुए संसार रूपी चक्र की धार ही जिसका आधार है, भ्रमणशील ऐसी लक्ष्मी को पाकर जो दान नहीं करते उनको पश्चाताप के अतिरिक्त कुछ फल नहीं मिलता ।।४।। १४. इस जगत का विनश्वर रूप विचार कर, अदृष्ट फल को स्वीकार कर, चन्द्र सूर्य समुद्र व पृथ्वी के रहते तक १५. परमभक्ति के साथ दक्षिणापथ के अन्तर्गत अद्रियलविदा स्थान से देशान्तरगमन करके आए भारद्वाज गोत्री, भारद्वाज आंगिरस १६. वार्हस्पत्य इन तीन प्रवरों वाले, (वेद की) आश्वलायन शाखा के अध्यायी, ब्राह्मण धनपाल के पौत्र, महिरस्वामी के पुत्र, विश्वरूप के लिए १७. ऊपर लिखे मालापुरक ग्राम से ९६ पर्व दण्ड के प्रमाण से, दोनों ओर ४२ माप से १८. भूनिवर्तन २० (अंगुल) माप से दो हल भूमि इसी संवत्सर को सदा के अनुसार लिख कर - - - - - - - - - - - - - - - भोजपुर का नरवर्मन कालीन जिन-प्रतिमा अभिलेख (संवत् ११५७=११०० ईस्वी) प्रस्तुत अभिलेख रायसेन जिले में भोजपुर नामक ग्राम में एक पुराने जैन मंदिर में स्थापित तीर्थंकर पार्श्वनाथ की पत्थर की एक प्रतिमा की पादपीठिका पर उत्कीर्ण है। इसका प्रथम उल्लेख इंडियन आकियालाजी, ए रिव्यू, १९५९-६०, क्रमांक बी-२५३ पर है। डी. सी. सरकार ने एपि. इं., भाग ३५, पृष्ठ १८६ पर इसका विवरण छापा । इससे पूर्व मुनि कांतिसागर ने “भोजपुर के प्राचीन स्मारक' नामक पुस्तिका में इसका उल्लेख किया। अभिलेख ५ पंक्तियों का है। इसका आकार २६४ २० सें.मी. है। अक्षरों की बनावट ११वीं१२वीं शती की नागरी लिपि है। अक्षरों की सामान्य लम्बाई १.२ सें.मी. है। अभिलेख की हालत अच्छी है। भाषा संस्कृत है , परन्तु त्रुटियों से भरपूर है । अभिलेख गद्य-पद्यमय है। इसकी अंतिम ३ पंक्तियों में अनुष्टुभ छन्द में एक श्लोक है। तिथि प्रारम्भ में संवत् ११५७ लिखी है जो ११०० ईस्वी के बराबर है। इसमें नरवर्मन के राज्य करने का उल्लेख है। वह इसी नाम का परमार राजवंशीय नरेश था। वह उदयादित्य का दूसरा पुत्र था । उसने पिता की मृत्यु हो जाने पर १०९४ ईस्वी में राज Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001130
Book TitleParmaras Abhilekh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarchand Mittal, Dalsukh Malvania, Nagin J Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1979
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Society
File Size9 MB
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