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________________ उदयपुर अभिलेख १११ १८. तदोः काध्यक्षख्यात३५ तदाभवुकहा२६ ॥२७।। प्तिक्रिया वितभ्यः दयम्भः। भुविनिजु ७ ____ क्ततदानु३८जाजा छायः । द्वेपितवचहिः ।। लोकद्वये पिसौ • भता प्राप्तिः ।। सक्रिया ४१ प्रशस्ति गुरुदेवभक्तः । विप्रोवहुवेदगा। १९. नरसोक्ति त्यगो विप्रभूततोषी आप्यायी ज्योतिषशास्त्र एभ्यक शिक्षा४२ पृथसिक्त दैवेदवचा गुण आवेदन हि शक्यतो हा आज्ञाता भावात्तु प्रतरति साधु मिप्रध्वजा २०. तहथः ।३०। अति प्राज्य स्तुति छद्मना' 3 देव देवय गस्यति। चन्द्रादित्य हेतु वदा' सात्यय पाश ।३१। मिहिर विज्ञापकाहामं चन्द्रादित्ययु आत्म्भव प्रशस्ति लिषितं ६ तेनः नानसहं २१. ईश्वरः ।।३२।। याव्ना ७ पृथ्वीरविष्वाहायावन्मेरुर्महानदी। तावत् पुत्रस्य पौत्रस्य शास्त्र सिक्षित कृता४८ ॥३३।। अस्तं भवत्या पारशी पुस्तक इह लिषितंमन। यदि तुष्ट: पूर्वचममः दोषः ॥३४॥ २२. सिधिः५० । दासान ५१ दास प्रभीरे ५२ पदे सौज्ञस्कन्दाभूअका करावसे 3 छत्रधार सितास्य पुत्र सन्ततदेवं ५४ तस्य पुत्र ५५ वसलव ६ पशंमय* ७ । (संभावित हिन्दी भाव) १. सिद्धि हो । श्रीगणेश और परब्रह्म को नमस्कार। पंचमुख वाले, तीन नेत्र वाले, जिनके मस्तक पर चन्द्र है, जिनकी जटा में गंगाप्रवाह है, शरीर पर भस्म लगी है, कण्ठ नीला है, दस भुजाओं से युक्त है, सर्प से सुशोभित है, जिसके अर्धांग में पार्वती का वास है। जिसके के चरणों में नूपुर शोभायमान है, सन्मति को प्रदान करने वाले, पार्वतीपति शिव को प्रणाम है ।।१।। श्रीमान पावार (परमार) वंश नरेश सूरवीर मालव राज्य स्थापित कर के विद्वान नरेश हुआ जो पापियों को दण्डित करता था । उससे प्रसिद्ध पुत्र सकल गुणों से युक्त, गांदल (गोंडल) नामक देवभक्त, दाता, भोक्ता, विवेकी और समस्त शत्रुओं को जीतने वाला, अपनी कीर्ति से विख्यात हुआ ।।२।। __उसके पुत्र पाता ( ज्ञाता) ने शत्रुसैन्यों का मंथन कर ( अरिवलमथन ) राज्य प्राप्त किया व वंश के पूर्वजों के अनुसार कीर्ति प्राप्त की। भूमंडल पर मध्यदेश में मालव में जा कर प्रसिद्धि प्राप्त की, शास्त्रानुकूल गतिवाला, देवपूजक, धर्म तपस्या करके, जलाशय से युक्त देवालयों का निर्माण किया ।।३॥ ५. बहुत व्यय करने वाला, जम्बूद्वीप में बहुत सुरालयों (मंदिरों) का निर्माण करने वाला, ब्राह्मणों को सुवर्ण धान्य का अतिदान देने वाला, उदयादित्य को योग्य मान कर नरेश बनाया व कीर्ति का संचय किया। ६. वर्ष सोलह अधिक ग्यारह सौ विक्रम संवत् १११६, नौ सो इक्यासी गत शालिवाहन शक ९८१ में धर्म, अर्थ, ३५. स्त. ३६. व दुमां प्रशस्तिमकारयत् ४१. सक्रियः ४२. पण्डित: अरचयत समां प्रशस्तिं सोकरोत् शुभा ४६. खि ५१. नु ५२. पूजित पाद भूषाज्ञाकारि वंशे ५७. तेनैवांडत्कीणिता ३७. यु ३८. द ३९. जो (त?) ४०. शु ४३. मिमां ४४. वालयस्थितां ४५. स्थिति ४७. वत् ४६. ज्ञा कृते ४९. खि ५०. द्धि ५३. सु ५४. वः ५५. त्रः ५६. सुवल Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001130
Book TitleParmaras Abhilekh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarchand Mittal, Dalsukh Malvania, Nagin J Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1979
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Society
File Size9 MB
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