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२८.
देपालपुर अभिलेख इति कमलदलाम्वुवि (बुबि) दुलोलां श्रियमनुचिन्त्य मनुष्यजीवि
तं च । स[क]लमिदमुदाहृतं च वुध्वा (बुवा) न हि पुरुषः परकीर्तयो विलोप्याः ।। [९॥] २९. इति । सम्बत् १०७९ चैत्र शुदि १४ । स्वयमाज्ञा। मंगलं महा३०. श्री: । स्वहस्तोयं श्रीभोजदेवस्य ।
अनुवाद (प्रथम ताम्रपत्र) १. ओं।
__ जो संसार के बीज के समान चन्द्र की कला को संसार की उत्पत्ति के हेतु मस्तक पर धारण करते हैं, मेघमंडल ही जिसके केश हैं, ऐसे महादेव श्रेष्ठ हैं ।।१।।
प्रलय काल में चमकने वाली विद्युत् की आभा जैसी पीली, कामदेव के शत्रु, शिव की जटायें तुम्हारा कल्याण करें ।।२।। ३. परमभट्टारक महाराजाधिराज परमेश्वर श्री सीयकदेव के पादानुध्यायी परमभट्टारक ४. महाराजाधिराज परमेश्वर श्री वाक्पतिराजदेव के पादानुध्यायी परमभट्टारक महाराजाधिराज ५. परमेश्वर श्री सिंधुराजदेव के पादानुध्यायी, परमभट्टारक महाराजाधिराज परमेश्वर श्री भोजदेव ६. कुशलयुक्त हो श्रीयुक्त उज्जयिनी पश्चिम पथक के अन्तर्गत किरिकक में आये हुए सभी राजपुरुषों ७. श्रेष्ठ ब्राह्मणों, आसपास के निवासियों, पटेलों और ग्रामीणों को आज्ञा देते हैं--आपको विदित
हो कि श्रायुक्त धारा में निवास करते हुए हमारे द्वारा असंख्य प्राणिवध करने पर प्रायश्चित की दक्षिणा स्वरूप स्नान कर चर व अचर के स्वामी भगवान भवानीपति की विधिपूर्वक अर्चना कर, संसार की असारता देख कर
इस पृथ्वी का आधिपत्य वायु में बिखरने वाले बादलों के समान चंचल है, विषयभोग प्रारम्भ मात्र में ही मधुर लगने वाले हैं, मानव प्राण तिनके के अग्रभाग पर रहने वाले जल बिन्दु के समान है, परलोक जाने में केवल धर्म ही सखा होता है ।।३।।
घूमते हुए संसाररूपी चक्र की धार ही जिसका आधार है, भ्रमणशील ऐसी लक्ष्मी को
पा कर जो दान नहीं करते, उनको पश्चात्ताप के अतिरिक्त कुछ फल नहीं मिलता ॥४॥ १२. इस जगत का विनश्वर रूप समझ कर ऊपर लिखे ग्राम से गांव की सामान्य भूमि का १३. समतल चार हलयुक्त चौतीस अंश निज सीमा तृण गोचर भूमि तक साथ में हिरण्य
भाग भोग १४. उपरिकर और सभी प्रकार की आय समेत श्रीयुक्त मान्यखेट से आये, आत्रेय गोत्री,
आत्रेय आर्चमानस १५. ये स्वयं श्री भोजदेव के हस्ताक्षर हैं।
(दूसरा ताम्रपत्र) १६. व श्यावाश्व इन तीन प्रवरों वाले, वह वच शाखी भट्ट सोमेश्वर के पुत्र श्रुत (वेद) अध्ययन से १७. सम्पन्न, ब्राह्मण वच्छल के लिये माता-पिता व स्वयं के पुण्य व यश की वृद्धि के लिये
अदृष्टफल को अंगीकार कर चन्द्र सूर्य समुद्र व पृथ्वी १८. के रहते तक परमभक्ति के साथ जल हाथ में लेकर राजाज्ञा द्वारा दान दिया है। यह
जान कर जैसा दिया जाने वाला भाग भोग कर
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