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अपभ्रंशप्रकरणम् । नावइ ।
पेक्खेविणु मुहु जिण - वरहों दीहर- नयण -सलोणु।
नावइ गुरु- मच्छर - भरिउ जलणि पचीसई लोणु ॥ ३ ॥ जणि'।
चम्पय-कुसुमहों मज्झि सहि भसलु" पइट्ठउ ।
सोहइ इंदनीलु" जणि कणइ बइठ्ठउ"॥ ४ ॥ जणु।
निरुमव" - रसु पिएं" पिअवि" जणु ॥ [ ४०१.३]
लिङ्गमतत्रम् ॥ ४४५॥ अपभ्रंशे लिङ्गमतन्त्रं व्यभिचारि प्रायो भवति ॥
गय"कुंभई दारंतु [ ३४५.१] । अत्र पुल्लिङ्गस्य नपुंसकत्वम् । अन्भा लगा डुंगरिहिं" पहिउ रडतउ जाइ।
जो एहा गिरि- गिलम-मणु सो किं धणहे घणा" ॥ १॥ अत्र अब्भा इति नपुंसकस्य पुंस्त्वम् । ___पाह विलग्गी अंबडी सिरु" ल्हसिउँ" खन्धस्सु ।
तो वि कटारइ हत्थडउ बलि किजउं कंतस्सु ॥ २ ॥ अत्र अंबडी” इति नपुंसकस्य स्त्रीत्वम् ।।
1 मुह A. 2 जिणवरह A; जिणवरह Cr. Sणअण T. 4 मच्छरि C. 5 भरिउँT. 6 पवेसइ T. 7 B omits. 8 चंप कुंपल T. 9 सइहि B. 10 भसल AC. 11 इन्दनील AT, इन्दनीलउ P. 12 उविठ्ठल T. 13 निरवमु A. 14 पिए A. 15 पिएवि ABCV. 16 गई A. 17 डुंगरेहिं AB. 18 गिलिण A. 19 धणाई CP, घणाइ T. 20 अंतडी C. 21 शिरु C. 22 ल्हसिउ A, लसिअर्ड B, ल्हसिअर्ड C. 23 कटार A, कडारइ T. 24 कंतस्य AB. 25 अंतडी C.
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