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अपभ्रंशप्रकरणम् । डिनेच्च ॥३३४॥ .. अपभ्रंशे' अकारस्य डिना सह इकार एकारश्च भवतः ॥
सायरु उप्परि तणु धरइ तलि घल्लइ रयणाई ॥ . .
सामि सुभिधु वि परिहरइ सम्माणेइ खलाई ॥ १॥ तले घल्लई॥
भिस्सेद्वा ॥ ३३५॥ अपभ्रशे अकारस्य भिसि परे एकारो वा भवति ॥
गुणहिं न संपय कित्ति पर फल लिहिआ भुजंति । केसरि न लहई वोड्डि" वि गय लक्खेहिं घेप्पंति ॥ १॥
उसेहें-हू ॥३३६ ॥ अस्येति" पञ्चम्यन्तं विपरिणम्यते । अपभ्रंशे अकारात्परस्य डसे हे हु" इत्यादेशौ भवतः ॥
वच्छहे गृण्हइ" फलई जणु कडुपल्लव वज्जेइ ।
तो वि महहुमु सुअणु" जिम्व ते उच्छंगि धरेह" ॥ १ ॥ वच्छहु गृण्हई ॥
भ्यसो हुँ॥३३७ ॥ अपभ्रंशे अकारात्परस्य भ्यसः पञ्चमीबहुवचनस्य हुँ इत्यादेशो भवति ।
दूरुड्डाणे पडिउ खलु अप्पणु" जणु मारेइ । जिह गिरि-सिंगहुँ पडिअ सिल अन्नु वि चूर करेइ ॥१॥
1 अपभ्रंसे C. 2 Sकारस्य A. 3 भवति S. 4 तिणु A. 5 संमाणेइ V. 6 तलि A. 7 घालइ C. 8 ऽकारस्य AC. 9 गुणेहिं BCD, गुणहि TV. 10 संपर STV. 11 पर C. 12 भुखंति A, भुञ्जन्ति V. 13 T transp. as लहइ न. 14 वोहिश. BOD. 15 लक्सहिं TV. 16 घिप्पंति C, घेप्पन्ति V. 17 स्येति C. 18 विपरिणमय्यते A. 19 हेहू C. 20 वच्छ, V. 21 गृहइ AB, गिण्हाइ ST. 22 फलइँ TV. 23 महइम AB. 24 सुअण A. 25 जिम ABT, जिवे PV. 26 उच्छंगे P, उच्छङ्गि V. 27 करेइ T. 28 गृहइ B, गिण्हइ S, गेण्हइ T: 29 ऽकारात्परस्य AB. 30 दूरुब्भाणे A, दूरुहाणि C. 31 अप्पण A. 32 जिहं P. . 38 सिाहुं V. 34 सिलु A. 35 अण्ण A, अन CD. 36 चूर C...
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