________________
स्वोपज्ञलघुवृत्तिविभूषितं
औकारावसाना वर्णाः स्वरसंज्ञाः स्युः । अ आ इ ई उ ऊ ऋ ऋ ल ल ए ऐ ओ औ ॥४॥
एक-द्वि-त्रिमात्रा हस्व-दीर्घ-प्लुताः ।१।११५॥ मात्रा कालविशेषः । एक-द्वि-त्र्युच्चारणमात्रा औदन्ता वर्णा यथासंख्यं हस्व-दीर्घ-प्लुतसंज्ञाः स्युः । अ इ उ ऋ ल , आ ई ऊ ऋ ल , ए ऐ ओ औ , आ ३ ई ३ ऊ ३ इत्यादि ।।५।।
अनवर्णा नामी ।।११६॥ अवर्णवर्जा औदन्ता वर्णा नामिसंज्ञाः स्यु: । इ ई उ ऊ ऋ ऋल लु ए ऐ ओ औ ॥६॥
ल्दन्ताः समानाः ।११७॥ लूकारावसाना वर्णाः समानाः स्युः । अ आ इ ई उ ऊ ऋ ऋ ल ल |७||
ए-ऐ-ओ-औ सन्ध्यक्षरम् ।।१।८॥ — ए ऐ ओ औ ' इत्येते वर्णाः सन्ध्यक्षराणि स्युः ।।८।।
अं-अः अनुस्वार-विसर्गी ।।११९॥ अकारावुच्चारणार्थौ । अं' इति नासिक्यो वर्ण: ' अः' इति च कण्ठ्यः यथासंख्यम् - अनुस्वार-विसर्गौ' स्याताम् ।।९।।
कादिर्व्यञ्जनम् ।१।१।१०॥ • कादिवर्णो हपर्यन्तो व्यञ्जनं स्यात् । क ख ग घ ङ , च छ ज झ ञ , ट ठ ड ढ ण , त थ द ध न , प फ ब भ म , य र ल व , श ष स ह ॥१०॥
अपञ्चमान्तस्थो धुट् ।।१।११॥ वर्गपञ्चमा-ऽन्तस्थावर्जः कादिर्वर्णो धुट् स्यात् । क ख ग घ , च छ ज झ , ट ठ ड ढ , त थ द ध , प फ ब भ , श ष स ह ।।११।।
पञ्चको वर्गः ।।१।१२॥ कादिषु वर्णेषु यो य: पञ्चसंख्यापरिमाणो वर्गः स स वर्ग: स्यात् । क ख ग घ ङ , च छ ज झ ञ , ट ठ ड ढ ण , त थ द ध न . प फ ब
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org