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________________ श्री नवतत्त्व प्रकरण " जीवाजीवा पुण्ण, पावाssसव संवरो य निज्जरणा 1 चन्धो मुक्खो य तहा, नवतत्ता हुति नायव्वा ॥ १ ॥ चउदस चउदस बाया - लीसावासी अ हुति बायाला 1 सत्तावन्नं वारस, चउ नव भेया कमेणेसिं ॥ २ ॥ एगविह दुविह तिविहा, चउव्विहा पंच छव्विहा जीवा । चेयण - तसइयरेहि, वेय-गई - करण - काएहि ॥ ३ ॥ एगिंदिय मुहुमियरा, सन्नियर पर्णिदिया य सवितिचउ । अपज्जत्ता पज्जत्ता, कमेण चउदस जियट्ठाणा ॥ ४ ॥ नाणं च दंसणं चेव, चरितं च तवो तहा । 1 वीरियं उवओगो य, एयं जीअस्स लक्खणं ॥ ५ ॥ आहारसरी रिंदिय- पज्जेत्ती आणपाणभासमणे चउ पंच पंच छपि य इगविगलाsसन्नीसन्नीणं ॥ ६ ॥ पर्णिदिअतिबलूसा - साऊ दस पाण चउ छ सग अट्ठ । इग-दु-ति- चउरिंदीणं, असन्नि सन्नीण नव दस य ॥ ७ ॥ धमाधम्मागासा, तिय-तिय भेया तहेव अद्धा य । खंधा देस पएसा, परमाणु अजीव चउदसहा धम्माऽधम्मा पुग्गल, नह कालो पंच हुति अज्जीवा । चलणसहावो धम्मो, थिरसंठाणो अहम्मो य ॥। ९ ॥ ॥ ८ ॥ अवगाहो आगासं, पुग्गलजीवाण पुग्गला चऊहा । खधा देस पसा, परमाणु चैव नायव्वा ।। १० ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001118
Book TitleNavtattva Prakarana with Meaning
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandulal Nanchand Shah
PublisherJain Shreyaskar Mandal Mahesana
Publication Year1987
Total Pages224
LanguageGujarati, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Principle
File Size10 MB
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