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________________ प्रकाशकनुं निवेदन पूज्यपाद आचार्य महाराज श्रीमद् विजयसिद्धिसूरीश्वरजी दादाना पट्टाल कार पूज्यपाद आचार्य महाराज श्रीमद् विजयमेघसूरीश्वरजी महाराजना शिष्य पूज्यपाद मुनिराजश्री भुवनविजयजी महाराजना अंतेवासी अने जैन साहित्यना तेमज भारतीय समन दार्शनिक साहित्यना तलस्पर्शी ज्ञाता तथा पोतानी अनुपम विद्वत्तावडे पूर्व तेमज पश्चिमना पौर्वात्य विद्याना विद्वानामां आगवु स्थान धरावनार परम पूज्य मुनिराज श्री जंबूविजयजी महाराज संशोधित अने संपादित महातार्किक, शासनप्रभावक आचार्य प्रवर श्री मल्लवादिसूरीश्वरजी प्रणीत द्वादशार नयचक्रम् नामना उच्च कोटिनो दार्शनिक लुप्तप्राय जेवो आकर ग्रंथ प्रगट करवा अमे भाग्यशाळी थया छीए, ते बाबतमां अमे गौरवनी लागणी अनुभवीए छीए. आ ग्रथना मूळ बार अर छे. तेना अकथी चार अर समावतो पहेलो भाग सं. २०२२मां अमे प्रसिद्ध को हतो. ते वखते पांचथी बार अर एकज भागमा समावी ते बीजा भाग रूपे जेम बने तेम जलदीथी प्रगट करवानी अमारी उमेद हती. पांचथी आठ अर छपाइ गया अने आठमा अर पूरो थतां नवमा अर छापवान काम शरु थयु. परंतु आठमा अरना छेल्ला पाना साथे नवमा अरना सात पानां छपायां पछी ते वखते अचानक अनिवार्य मुश्केलीओ आवी पडी अने दिलगीरी साथे छापकाम मोकुफ राखवु पडयु. आवी परिस्थितिमां जे चार अरो छपाइ गया छे ते वध वखत राखी नमकतां तेनो बीजो भाग तैयार करी विद्वानोना हाथमा मकवो तेवा निर्णय लेवामां आव्यो. ते प्रमाणे आ पांचथी आठ अर समावतो बीजो भाग प्रसिद्ध करीप छीण. नवथी बार अर तथा अन्य उपयोगी परिशिष्टो समावतो त्रीजो भाग जलदीथी प्रगट करवानी अमारी उमेद छे. नवमा अरनां जे सात पानां आ बीजा भागमा आपवामां आव्यां छे, ते फरीथी छापीने वाचकानी सुविधा खातर त्रीजा भागमां नवमो अर पूरेपूरो आपवामां आवशे. आ बीजा भागमा समाविष्ट अरोना परिशिष्टो वगेरे नवथी बार अरोना परिशिष्टो साथे त्रीजो भागमां आपवामां आवशे. आ ग्रंथना प्रथम भागमां अंग्रेजीमां विद्वत्तापूर्ण प्रस्तावना जगतना एक उच्च कोटिना दार्शनिक अने वियेना युनिवर्सिटीमां भारतीय दर्शनशास्त्रो तथा इरानियन तत्त्वज्ञाननी विद्याशाखाना अध्यक्ष विद्वान प्रोफेसर डो. ओ. फ्राउवलनेरे लखी हती. आ बीजा भागन प्रस्तावना पण तेओश्री पासे लखाववानी अमारी उमेद हती. पण गई साले दुर्भाग्ये तेमन शोकजनक अवसान थतां अमारी ते उमेद पूर्ण थई शकी नथी. अमे प्रो. डी. ए. फ्राउवलनेरनी अमारी तरफनी भली लागणीओने याद करी आ तके तेमनी आभार मानीए छीए. आवा धर्म अने संस्कृतिना पायाना ग्रंथो ए आपणा समाजनुं गौरव छे, अने तेमनु प्रकाशन आपणा गौरवशाळी अस्तित्व माटे आवश्यक छे. अमने कहेतां आनद थाय के के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001109
Book TitleDvadasharam Naychakram Part 2 Tika
Original Sutra AuthorMallavadi Kshamashraman
AuthorSighsuri, Jambuvijay
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1976
Total Pages403
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Nay, & Nyay
File Size11 MB
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