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प्रस्तावना
दुष्कर होवा छतां आ रीते घणा उपायो द्वारा मल्लवादिसम्मत मूळनी कल्पना करवानो अमे यथामति अने यथाशक्ति प्रयत्न कर्यो छे, परंतु ज्यां कोई पण रीते मूळ तारवयु अमने तद्दन अशक्यप्राय लाग्युं त्यां खाली भाग राखीने .... .... .... आवां टपका ज आप्यां छे, जुओ पृ० १० पं० १,पृ०८६ पं० ५, पृ० ९२ पं०५ वगेरे।
नयचक्रटीकाकार सिंहमूरिक्षमाश्रमण ___"इति नियमभङ्गो नवमोऽरः श्रीमल्लवादिप्रणीतनयचक्रस्य टीकायां न्यायागमानुसारिण्यां सिंहसूरिगणिवादिक्षमाश्रमणदृब्धायां समाप्तः ।" आ प्रमाणे नवमा अरने अंते ( पृ० ४९४-२) तेमज "इति नियमनियमभङ्गो नाम आदितो विधिभङ्गादारभ्य गम्यमाने द्वादशो भङ्गो द्वादशारनयचक्रस्य श्रीमन्मल्लवादिकृतस्य टीकायां श्रीमत्सिंहसूरिगणिरचितायां समाप्तः" आ प्रमाणे बारमा अरने अंते (पृ०५४८-२) नयचक्रटीकामां आवता उल्लेख उपरथी 'आना टीकाकार सिंहमूरि हता अने तेओ ‘गणि, वादी तथा क्षमाश्रमण' पदवीथी विभूषित हता' एम स्पष्ट जणाय छे । एमणे पोतानी टीका माटे ‘न्यायागमानुसारिणी' एवो जे उल्लेख कर्यो छे ते तद्दन यथार्थ छे, कारण के आ टीका दार्शनिक अने आगमिक उल्लेखोथी भरपुर छ । टीकामां आवती अनेकविध सूक्ष्म चर्चाओ जोतां तेमज जैन आगमादि ग्रंथो, वेद, उपनिषद्, सर्वदर्शनोना आकर ग्रंथो, योगसाहित्य, आयुर्वेदिक साहित्य, व्याकरणना ग्रंथो वगेरेना विपुल उल्लेखो जोतां टीकाकार श्री सिंहसूरि क्षमाश्रमण अनेकशास्त्रोनुं केवु अगाध पांडिल्य धरावता हता ए स्पष्ट जोई शकाय छे । आ विषे विस्तारथी अमे प्रथम जणावी गया छीए । आ सिवाय एमना जीवनचरित्र विष बीजी कोई ज माहिती कोई पण ग्रंथमां अमे जोई नथी। " इति मल्लवादिक्षमाश्रमणपादकृतनयचक्रस्य तुम्बं समाप्तम् । ग्रंथाग्रं १८०००।" आ प्रमाणे बधी प्रतिओमां अंते उल्लेख मळे छे तेथी '३२ अक्षरनो एक श्लोक' ए गणत्री प्रमाणे आ टीका १८००० श्लोकप्रमाण छ । पाना उपरथी अमे करेली स्थूल गणना प्रमाणे पण आ १८००० श्लोकप्रमाण मळी रहे छे।
भगवान् जिनभद्रगणिक्षमाश्रमणे पोते रचेला विशेषावश्यकभाष्य उपर खोपज्ञटीका रचवा मांडी हती, परंतु छट्ठा गणधरनी वक्तव्यता सुधी टीकानी रचना करीने तेओ स्वर्गवासी थया हता, एटले शेष रहेला लगभग अर्धा भागनी टीका कोट्टार्यवादिगणिमहत्तरे पूर्ण करी छ । जेसलमेरना ज्ञानभंडारमा
१ तुलना-असङ्गविरचित व्याख्या तेमज वसुबन्धुविरचित भाष्य सहित [बौद्धाचार्यमैत्रेयरचित ] मध्यान्तविभाग नामना ग्रंथ उपर स्थिरमतिए रचेली टीका माटे पण आगमानुसारिणी एवो निर्देश मळे छे. जुओ प्राक्कथन पृ० १७ टि. १ । स्थिरमति अने गणमति ए बने वलभी पुरना बौद्ध विहारना नामांकित विद्वानो हता। स्थिर विक्रमनी छट्ठी शताब्दी आसपास गणाय छे । बौद्ध विद्वान संघभद्र के जे बौद्धाचार्य वसुबन्धुनो मोटो प्रतिस्पर्धी हतो तेणे वसुबन्धुना अभिधर्मकोश उपर न्यायानुसार नामनी व्याख्या लखी हती एवो उल्लेख बौद्ध ग्रंथोमां मळे छे। संघभद्रनो समय विक्रमनी पांचमी शताब्दी आसपास होवो जोईए॥ २ ए बे गाथा नीचे मुजब छे-"पंच सता पणतीसा सगणिवकालस्स वट्टमाणस्स । तो चेत्तपुण्णिमाए बुधदिण सातिमि णक्खत्ते ॥ रजेणुपालणपरे सी[लाइ]चम्मि णरवरिंदम्मि । वलभीणगरीए इमं महवि......मि जिणभवणे ॥"-शक संवत् ५३१ मा चैत्री पूर्णिमाने दिवसे बुधवारे स्वाति नक्षत्रमा शीलादित्य राजाना राज्यमा वलभी नगरीमा जिनभवनमा कंईक थयुं होय एवो आ गाथामा निर्देश छ । पार्नु जराक खंडित थयु होवाने लीधे थोडो पाठ त्रुटित थयो होवाथी 'ते दिवसे शुं कर्यु छे' ए चोकस जणातुं नथी। वली ए गाथा बीजी कोई प्रतिमा मळती नथी तेमज एना उपर कोईए टीका पण करी नथी । ते दिवसे ए प्रति लखवामां आवी होय ए पण बनवा जोग छ।
नय.प्र. १०
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