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________________ ८३ 1 भाषा अध्ययन पण कर्यु । त्यारपछी प्रमाणसमुच्चय आदिनां टिबेटन भाषांतरो मेळववानो प्रयत्न कर्यो, परंतु ए मेळवतां अमने जे अपार कष्टनो अनुभव थयो छे तेनुं वर्णन करवा बेसीए तो पानांओनां पानां भराय । आखरे अनेक वर्षोना प्रयत्नने अंते अमेरिका, युरोप, जापान आदि देशोना अनेक विद्वानोना सहकार अने सौजन्यथी त्यांना पुस्तकालयोमां विद्यमान ते ते टिबेटन भाषांतरो माइक्रोफिल्म आदि रूपे अमने मळी शक्यां । फिल्म उपरथी घणा खर्चे फोटाओ तैयार कराव्या । त्यारपछी तेमांना उपयोगी अंशनुं महिनाओ सुधी चिंतन करीने जे संस्कृत तैयार करी शकायुं ते अमे भोटपरिशिष्टमां आप्युं छे । टिबेटनुं मूळ नाम भोट छे अने तेनी भाषा भोट भाषा कहेवाय छे । तेथी आ परिशिष्टनुं अमे भोटपरिशिष्ट नाम राख्युं छे । अमने आशा छे. के आचार्य श्री मल्लवादीए नयचक्रमां तथा सिंहसूरिक्षमाश्रमणे नयचक्रटीकामां दिङ्नागना मतनी जे विचारणा करी छे तेनुं तात्पर्य समजवामां आ भोटपरिशिष्ट वाचकोने अत्यंत सहायक थशे | विशालामल तीटीका सहित तेमज खोपज्ञवृत्तिसहित प्रमाणसमुच्चयना प्रत्यक्ष, स्वार्थानुमान, परार्थानुमान, दृष्टांत आ चार परिच्छेदोमांथी नयचक्रमां आवती चर्चामां उपयोगी अंशनुं तथा बीजा पण प्रसक्तानुप्रसक्त घणा अंशनुं तेमज दिङ्नागरचित आलम्बनपरीक्षावृत्ति, हस्तवालप्रकरण अने आर्यदेवरचित चतुःशतकना अमुक अंशनुं पण टिबेटन भाषांतर उपरथी संस्कृत करीने भोटपरिशिष्टमां अमे आप्युं छे' । नयचक्रना आठमा अरमां दिङ्नागना मतनी जे अति विस्तृत विचारणा छे ते प्रमाणसमुच्चयना बीजा स्वार्थानुमान परिच्छेद, त्रीजा परार्थानुमान परिच्छेद अने पांचमा अपोह परिच्छेद साथ संबंध धरावे छे । टीका तथा खोपज्ञवृत्ति सहित प्रमाणसमुच्चयनो एटलो अंश टिबेटन भाषांतर उपरथी संस्कृत करीने नयना आठमा अरमां टिप्पणोमां ( फुट नोटमां ) आपवामां आवशे । अमने आशा छे के टिबेटन भाषांतरो उपरथी संस्कृतमां तैयार करेला आ बधा अंशो जैन, सांख्य, मीमांसा, न्याय, बौद्ध आदि दर्शनोना प्राचीन ग्रंथोमां ज्यां दिङ्नागना मतनी चर्चा आवे छे त्यां पण ते ते चर्चा समजवामां अभ्यासीओने खास उपयोगी थशे । प्रस्तावना वैशेषिकसूत्रसम्बन्धि परिशिष्ट ( टिपृ० १४१ ) चन्द्रानन्दरचितवृत्तिसहित प्राचीन वैशेषिकसूत्र नयचक्रमां जुदे जुदे स्थळे संपूर्णतया अमे शा माछा छेतेनां कारणो अमे पहेलां जणावी गया छीए । टिपृ० ८ पं० २२- ३५ मां पण आ विषे अमेजणायुं छे । वैशेषिकसूत्रना दश अध्यायो छे, तेमां प्रथम सात अध्यायोमां दरेकमां बे बे आह्निक । आ बधां सूत्रो नयचक्रमां भिन्न भिन्न स्थळे टिप्पणोमां छापेलां होवाथी ते ते सूत्रो कया कया पानामां छपाए छे ए जणाववा माटे आ परिशिष्टनी अमे संकलना करी छे । मुनिराज श्री पुण्यविजयजी महाराज पासेथी मळेली जेसलमेरनी एक प्रति के जेनी P. संज्ञा राखी छे तेना आधारे चन्द्रानन्दरचितवृत्तिसहित वैशेषिकसूत्र अमे अहीं छाप्युं हतुं । परंतु त्यारपछी वडोदराना १ टिबेटन लिपि तद्दन जुदा प्रकारनी होय छे, एना टाईपो आ देशमां सहेलाईथी मळी शके नहीं, एटले भोटपरिशिष्ट. छापती वखते टिबेटन लिपि उपरथी देवनागरीमां रूपांतर करीने प्रमाणसमुच्चय अने स्वोपज्ञवृत्तिना ते ते अंशनुं टिबेटन भाषांतर पहेला छाप्युं छे अने त्यारपछी ते ते अंशोनुं संस्कृत आप्युं छे ॥ २ जुओ पृ० ६०७-६०८, ६१४, ६१७, ६२९-६३३, ६३८-६४०, ६५०-६५१, ६६३, ६७०, ६.७४, ६७५, ६७८-६८०, ६८३, ६८४, ६८८, ६९३, ७०२, ७०३, ७२०, ७२४ -७३० ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001108
Book TitleDvadasharam Naychakram Part 1 Tika
Original Sutra AuthorMallavadi Kshamashraman
AuthorSighsuri, Jambuvijay
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1966
Total Pages662
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Nay, & Nyay
File Size19 MB
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