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________________ श्री अनुयोगद्वारसूत्रस्य द्वितीयविभागस्य अष्टमं परिशिष्टम् - विश्वप्रहेलिकानुसारेण १६४ कल्पना करते है किं 'शीर्षप्रहेलिका' संख्या को हम ‘असंख्यात' के समान मान लें। इससे हमें ‘रज्जु' का न्यूनतम मान मिल सकता है । इस प्रकार कुंएं में रहे हुए केशाग्र-खण्डों की संख्या है - (३.३ x १०३६) x (७.५८ x १०१९३) प्रति समय एक केशाग्र-खण्ड बाहर निकाला जाता है; अतः 'सू०उ०प० के समयों की संख्या है - (३.३ x १०३६) x (७.५८ x १०१९३) अब, २५ कोटाकोटि' सू०उ०प० के समयों की संख्या, जो कि परिभाषा के अनुसार द्वीपसमुद्रों की संख्या अर्थात् 'न' है अतः, न = (२५ x १०१४) x (३.३ x १०३६) x (७.५८ x १०१९३) = ६.२५ x १०२४५ 'रज्जु' के अंक-समीकरण में 'न' के स्थान पर उपरोक्त संख्या रखने पर, _ [ (६.२५ x १००१) + १ ] १.५ योजन २४ १ रज्जु - २ (६.२५ ४ १० (१.८८ x १०२४५) योजन लगभग 'प्रथम प्रकार' में जिस प्रकार से योजन के विविध मूल्य लेकर 'रज्जु' का मान माईल एवं प्रकाशवर्ष में निकाला था, उस प्रकार यहां पर भी निकाला जा सकता है । क्रमशः पूर्व रीति के अनुसार, (१) १ रज्जु = ८.० x १०{ (१.८८ x १०२४५) + ३} माईल (२) १ रज्जु = ४.०० x १०६ (१.८ x १०२४५) + ३} माईल प्रकाश वर्षों में क्रमशः ये संख्याए - (१) ४.७०४ x १०६ (१.८८ x १०२४५) - ९ } प्रकाश वर्ष (२) २.३५२ x १०६ (१.८८ x १०२४५) - ९ } प्रकाश वर्ष विश्व का घनफल जो ३४३ घन-रज्जु हैं, क्रमशः घन माइलों में - १. देखें परिशिष्ट - २। २. एक कोटाकोटि = १०१४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001107
Book TitleAgam 45 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Part 02
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorJambuvijay
PublisherMahavir Jain Vidyalay
Publication Year2000
Total Pages560
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_anuyogdwar
File Size11 MB
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