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________________ पुरुषार्थसिद्धय पाय ] (३४५ विकारके अन्य किसी प्रयोजनवश जाना ब्रह्मचर्यमें कुछ दूषण नहीं लाता इसलिये विकाररहित कार्यवश चले जाना अतीचार नहीं है, किंतु जो परस्त्री या अविवाहिता व्यभिचारिणी है उसके यहां वैकारिक परिणामोंसे जाना अतीचारमें गर्भित है । इसीप्रकारके अतीचारोंसे ब्रह्मचर्यव्रतपालक श्रावकों को दूर रहना चाहिये, तभी वे अपने व्रतकी पूर्ण रक्षा कर सकते हैं । परिग्रहपरिमाणव्रतके अतीचार वास्तुक्षेत्राष्टापदहिरण्यधनधान्यदासदासीनां । कुप्यस्य भेदयोरपि परिमाणातिक्रमाः पंच ।।१८७॥ ___ अन्नयार्थ-( वास्तुक्षेत्राष्टापट हिरण्यधनधान्यदासदासीनां ) वास्तु-घर. क्षेत्र-धान बोने का स्थान या खेत. अष्टापद-सोना, हिरण्य-चांदी, धन-गौ भैंस घोड़ा आदि, धान्य-गेहूं चना चावल आदि. दास-नौकर चाका, दासी-नौकरनी, इनके । अपि कुप्यस्य भेदयोः ) और कुप्यके दोनों भेद-क्षाम और कौशेय अर्थात रेशमीवस्त्र और सूतोवस्त्र आदि इन सबके ( परिमाणातिकमाः पंच ) परिमाणका -नियमका उल्लंघन कर देना, ये पांच परिग्रहपरिमाणवतके अतीचार हैं। ___ विशेषार्थ-प्रत्येक दो दो भेदोंको एक कोटिमें सम्हाल करनेसे पांच अतीचार हो जाते हैं; जैसे-वास्तु क्षेत्र-घर और खेत दोनों एक कोटिमें लेने चाहिये, अष्टापद हिरण्य-सोना चांदी दोनों एक कोटिमें लेनेचाहिये, इसीप्रकार धन धान्य एकमें और दास दासी एकमें तथा कुप्यके दोनों भेद एकमें, इस रीतिसे पांच अतीचार हो जाते हैं । जो जो वस्तुयें जितनी जितनी मर्यादाको लेकर परिग्रहपरिमाणव्रतमें रख ली जाय उनमें कुछ अधिक बढ़ा लेना; चार घर रक्खे हों तो एक पांचवे घरकी कोठरी और काममें लेना,खेत सौ बीघा रख लेने पर भी एक दो बीघा और भी काममें आजाय तो उसकी परवा नहीं करना, इसीप्रकार नौकर चाकर बढ़ालेना, वस्त्र बरतन आदि मर्यादित चीजोंसे अधिक काममें ले लेना, ये सब परिग्रहपरिमाणवत के अतीचार हैं । अधिक वस्तुओंका उपयोग करनेसे अधिकआरंभ बढ़ता है, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001104
Book TitlePurusharthsiddhyupay Hindi
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorMakkhanlal Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1995
Total Pages460
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Principle
File Size11 MB
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