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________________ पुरुषार्थं सिद्धच पाय ] पर भी यह चिंतन करना कि इनमें अमुककी विजय हो और अमुककी हार हो तो ठीक है । अरे ! जिसका जो होगा सो होगा, तुम बिना मतलब क्यों रागद्वेष बढ़ाकर कर्मबन्ध बांध रहे हो । इसीप्रकार युद्ध की चिंता करना, अमुक राष्ट्रोंमें अथवा अमुक दोनों भाइयोंमें युद्ध छिड़ जाय तो अच्छा हो यह चिंता करना भी अनर्थदण्ड है । किसीकी स्त्रीको देखकर यह चिंतन करना कि मैं इसके पास जाता तो अच्छा होता, यह विचार भी बिना प्रयोजन राग बढ़ानेवाला है । किसीकी कोई वस्तु देखकर यह विचार करना कि इसकी वह चीज चोरी चली जाय तो ठीक हो । क्यों भाई ! किसीकी चीज चोरी चली जायगी तो तेरे घरमें क्या आवेगा या उसकी वस्तु चोरी में चली जानेसे तुझे क्या इष्टकी प्राप्ति होगी । इसके सिवा किसीके लिये मारेजानेकी बात चिंतन करना, किसीके बांधे जानेकी चिंता करना, किसी के सर्वस्वहरणकी चिंता करना कि उसका सब धन कैसे नष्ट हो इत्यादि अनेक बुरे विचार मनमें लाना अपध्यान - खोटाध्यान कहलाता है इसप्रकारके दुर्विचारोंको छोड़ देना ही उचित है क्योंकि इनके चितवन से केवल पापरूप ही फल मिलता है और यही अपध्यान - अनर्थदंडत्याग व्रत कहलाता है । विद्यावाणिज्यमषीकृषिसेवा शिल्पजीविनां पुंसां । पापोपदेशदानं कदाचिदपि नैव वक्लव्यं ॥ १४१ ॥ पापोपदेश - अनर्थदण्डव्रत अन्वयार्थ - (विद्यावाणिज्य मषी कृषिसेवा शिल्पजीविनां पुंसां ) विद्या- ज्ञान, वाणिज्यव्यापार, मषी स्याही, कृषि खेती, सेवा-चाकरी, शिल्प-कलाकौशल इन छह प्रकारके उद्योगों द्वारा आजीविका करनेवाले पुरुषोंके लिये ( पापोपदेशानं ) पापरूप उपदेशका दान ( कदाचित् अपि ) कभी भी (नैव वक्तव्यं ) नहीं कहना चाहिये । विशेषार्थ - जो पुरुष विद्याद्वारा आजीविका करते हैं, मंत्र, तंत्र, यंत्रद्वारा आजीविका करते हैं, ज्ञानको बेचकर द्रव्य पैदा करते हैं, विद्या पढ़ाते समय उपकारबुद्धि न रखकर जो उससे द्रव्य कमाना ही लक्ष्य रखते हैं Jain Education International | २८७ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001104
Book TitlePurusharthsiddhyupay Hindi
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorMakkhanlal Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1995
Total Pages460
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Principle
File Size11 MB
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