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[ पुरुषार्थसिद्धथ पाय
अग्निपर पकाये हुये मांसमें नहीं रहते होंगे ? तो आचार्य महाराज इसका उत्तर देते हैं कि-चाहे मांस कच्चा हो, चाहे पकाया हुआ मांस हो चाहे अग्निपर पकाया जा रहा हो, कैसी भी अवस्थामें वह क्यों न हो, हर समय उसमें उसी जातिकी-जिसजातिके जीवका वह मांस है उसी जातिवाले अर्थात् गौ भैंस आदि जिन जीवोंके शरीरका वह मांसपिंड है उसी. प्रकारके वर्णादिवाले परमाणुओंके शरीरवाले एवं उसीप्रकार आकार विशेष रखनेवाले अनंत निगोदजीव उसमें निरंतर उत्पन्न होते रहते हैं।
इसलियेआमां वा पकवां वा खादति यः स्पृशति वा पिशितपेशीं। स निहंति सततनिचितं पिंडं बहुजीवकोटीनां॥६८॥
अन्वयार्थ-( यः ) जो ( आमां ) कच्ची ( वा ) अथवा ( पक्वां ) पकाई हुई ( पिशितपेशी ) मांसकी डलीको ( खादति ) खाता है ( वा ) अथवा ( स्पृशति ) स्पर्श करता है (सः) बह ( बहुजीवकोटीनां ) अनन्त जीवराशियों के ( सततनिचितं ) निरन्तर संचित हुए (पिंडं ) पिंडको ( निहंति ) नष्ट कर देता है । _ विशेषार्थ -जो मांसपिंडको खाता है वह तो अनंत जीवराशिको खाता ही है उस पापिष्ठकी तो बात ही क्या ? परन्तु जो उस अनन्त जीवराशिमय मांसको छूता भी हैं वह भी उन जीवोंका घातक है इसलिये मांसका स्पर्श भी दुर्गतिका कारण है और तीवहिंसा का मूलभूत है।
___ मधुमें हिंसा मधुशकलमपि प्रायो मधुकरहिंसात्मकं भवति लोके। भजति मधु मूढधीको यः स भवति हिंसकोत्यंतं ॥६६॥
अन्वयार्थ--[ लोके ] लोकमें [ मधुशकलमपि ] मधुका एक छोटा सा खंड भी [प्रायः] बहुधा [ मधुकरहिंसात्मकं ] मक्खियोंकी हिंसाका स्वरूप [ भवति ] होती है। [यः ] जो [ मधीकः ] मूढ़ बुद्धि रखनेवाला [ मधु भजति ] मधुका सेवन करता है [ सः ] वह [ अत्यंत हिंसकः भवति ] अत्यंत हिंसक होता है।
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