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________________ सम्प्रदाय और कांग्रेस यह बात चारों तरफ फैलाई जाती है कि जैन शास्त्रोंमें अनेक उदात्त सिद्धान्त हैं। उदाहरणके लिए प्रत्येक साधु और आचार्य कह सकता है कि महावीरने तो बिना जॉत-पाँतके भेदके, पतितों और दलितोंको भी उन्नत करनेकी बात कही है, स्त्रियोंको भी समान समझनेका उपदेश दिया है; किन्तु आप जब इन उपदेशकोंसे पूछेगे कि आप खुद इन सिद्धान्तोंके माफिक व्यवहार क्यों नहीं करते, तो वे एक ही जवाब देंगे कि क्या करें, लोकरूढ़ि दूसरी तरफ हो गई है, इसलिए सिद्धान्तके अनुसार व्यवहार करना कठिन है। वक्त आनेपर यह रूढ़ि बदलेगी, और तब सिद्धान्त अमलमें आवेंगे। इस तरह ये उपदेशक रूढ़ि बदलनेके बाद काम करनेको कहते हैं। सो ये रूढ़ियाँ बदलकर या तोड़कर उनके लिए कार्यक्षेत्र निर्माण करनेका ही तो. कार्य कांग्रेस कर रही है। इसलिए कांग्रेसके सिवाय दूसरा कोई सांप्रदायिक कार्यक्रम ऐसा नहीं है जो नई पीढ़ीके विचारकोंको संतोष प्रदान कर सके। हाँ, सम्प्रदायमें ही सन्तोष मान लेने लायक अनेक बातें हैं । जो उनको पसन्द करें, वे उसीमें रहें। यदि थोड़ी अधिक कीमत देकर मोटी खुरदरी खादी पहनकर भी अहिंसा वृत्तिका पोषण न करना हो, और नलके ऊपर चौबीसों घण्टे छन्ना कपड़ा बाँधकर या हिंसकोंके हाथसे अनेक जीवोंको छुड़वाकर अंहिंसा पालनेका संतोष करना हो, तो सम्प्रदायिक क्षेत्र बहुत सुन्दर है। लोग उस व्यक्तिको सहज ही अहिंसाप्रिय और धार्मिक मान लेंगे, और उसको कुछ ज्यादा करना कराना भी न पड़ेगा। दलितोद्धारके लिए प्रत्यक्ष कुछ भी कार्य किये बिना या उसके लिए धन व्यय किये बिना भी सम्प्रदायमें बड़े धार्मिक कहलानेकी विधि नोकारशी, पूजापाठ, और संघ निकालनेकी खर्चीली प्रथाएँ मौजूद हैं, जिनमें दिलचस्पी लेनेसे धर्म-पालन समझा जाय, संप्रदायका पोषण समझा जाय और इसके अलावा तात्विक रूपसे कुछ करना भी न पड़े। जहाँ देखो वहाँ सम्प्रदायमें एक ही वस्तु नजर आवेगी, और वह यह कि कोई न कोई निर्जीव क्रियाकांड, कोई ना कोई धार्मिक व्यवहारकी रूढ़ि पूरी कर उसीमें धर्म करनेका संतोष मान लेना और फिर उसीके आधारपर आजीविकाका पोषण करना। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001072
Book TitleDharma aur Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal Sanghavi, Dalsukh Malvania
PublisherHemchandra Modi Pustakmala Mumbai
Publication Year1951
Total Pages227
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Articles
File Size13 MB
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