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________________ धर्म और बुद्धि एक तरहकी भीति पैदा हो जाती है। वे समझने लगते हैं कि ये प्रश्न करनेवाले वास्तवमें तात्त्विक धर्मवाले तो हैं नहीं, केवल निरी तर्कशक्तिसे हम लोगोंके द्वारा धर्मरूपसे मनाये जानेवाले व्यवहारोंको अधर्म बतलाते हैं । ऐसी दशामें धर्मका व्यावहारिक बाह्यरूप भी कैसे टिक सकेगा ? इन धर्म-गुरुओंकी दृष्टिमें ये लोग अवश्य ही धर्म-द्रोही या धर्म-विरोधी हैं । क्यों कि वे ऐसी स्थितिके प्रेरक हैं जिसमें न तो जीवन-शुद्धिरूपी असली धर्म ही रहेगा और न झूठा सच्चा व्यावहारिक धर्म ही । धर्मगुरुओं और धर्म-पंडितोंके उक्त भय और तज्जन्य उलटी विचारणा से एक प्रकारका इन्द्र शुरू होता है । वे सदा स्थायी जीवन-शुद्धिरूप तात्त्विक धर्मको पूरे विश्लेषण के साथ समझाने के बदले बाह्य-व्यवहारोंको त्रिकालाबाधित कहकर उनके ऊपर यहाँ तक जोर देते हैं कि जिससे बुद्धिमान् वर्ग उनकी दलीलोंसे ऊबकर, असन्तुष्ट होकर यही कह बैठता है कि गुरु और पंडितों का धर्म सिर्फ ढकोसला है--धोखेकी टट्टी है। इस तरह धर्मोपदेशक और तर्कवादी बुद्धिमान् वर्गके बीच प्रतिक्षण अन्तर और विरोध बढ़ता ही जाता है। उस दशामें धर्मका आधार विवेकशून्य श्रद्धा, अज्ञान या बहम ही रह जाता है और बुद्धि एवं तज्जन्य गुणोंके साथ धर्मका एक प्रकार विरोध दिखाई देता है । __ यूरोपका इतिहास बताता है कि विज्ञानका जन्म होते ही उसका सबसे पहला प्रतिरोध ईसाई धर्मकी ओरसे हुआ। अन्तमें इस प्रतिरोधसे धर्मका ही सर्वथा नाश देखकर उसके उपदेशकोंने विज्ञानके मार्गमें प्रतिपक्षी भावसे आना ही छोड़ दिया। उन्होंने अपना क्षेत्र ऐसा बना लिया कि वे वैज्ञानिकों के मार्गमें बिना बाधा डाले ही कुछ धर्मकार्य कर सकें। उधर वैज्ञानिकों का भी क्षेत्र ऐसा निष्कण्टक हो गया कि जिससे वे विज्ञानका विकास और सम्बर्वन निर्वाध रूपसे करते रहें । इसका एक सुन्दर और महत्त्वका परिणाम यह हुआ कि सामाजिक और अन्तमें राजकीय क्षेत्रसे भी धर्मका डेरा उठ गया और फलतः वहाँकी सामाजिक और गजकीय संस्थायें अपने ही गुणंदोषोंगर बनने बिगड़ने लगी। इस्लाम और हिन्दू धर्म की सभी शाखाओंकी दशा इसके विपरीत है । इस्लामी दीन और धर्मोकी अपेक्षा बुद्धि और तर्कवादसे अधिक घबड़ाता है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001072
Book TitleDharma aur Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal Sanghavi, Dalsukh Malvania
PublisherHemchandra Modi Pustakmala Mumbai
Publication Year1951
Total Pages227
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Articles
File Size13 MB
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