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________________ २०८ धर्म और समाज है। अक्सर लोग पूछ बैठते हैं कि इसमें तुम क्या देखकर फंस गये। मैं उत्तर देता हूँ कि मुझे मरते समय विल (वसीयत) करनेकी जरूरत न पड़ेगी। और धनिक लोग भले ही अभिमान करें किन्तु विद्याधनवालों-विद्वानोंको-ढूँढ़े बिना उनका भी काम नहीं चल सकता । खुदके लिए नहीं तो अपनी सन्तानके लिए तो उन्हें विद्वानोंकी आवश्यकता होती ही है। यह मैं लक्ष्मी और सरस्वतीके विरोधकी बात नहीं कह रहा हूँ। विद्यार्थीके साधना कालमें लक्ष्मीकी लालसा विघ्नरूप है। विद्याकी साधनामें यदि कोई विघ्न है तो वह धन है। निर्धन स्थान और गरीब कुटुम्बमें रहते हुए धनकी महत्त्वाकांक्षा जाग्रत नहीं होती। धनिकों के संसर्गसे ही वह जागती है । इस लिए चतुर्थ भूमिकामें व्यक्त होनेवाली अपनी मौलिक साधनोमें हमें इससे सावधान रहना चाहिए। ___ एक विघ्न और भी है। कई बार पिछली भूमिकाओंकी त्रुटियाँ भी आगेकी भूमिकाओंमें दिखाई देती हैं । उन्हें भी दूर करना चाहिए । मैंने अपने समयका सदुपयोग करनेवाले विद्यार्थी बहुत कम देखे हैं। उनका पुरुषार्थ परीक्षा-काल तक ही सीमित रहता है। इससे उनका आरोग्य भी नष्ट होता है। यह भूल दूसरी भूमिकामें बारबार देखी जाती है। परन्तु तृतीय और चतुर्थ भूमिकामें यह भूल कदापि नहीं होनी चाहिए। और यदि होती हो, तो उसे अपने प्रयत्नसे और विवेकसे दूर करना चाहिए। पहली दो भूमिकाओंकी भूलोंके लिए हम शिक्षकों, शिक्षा-पद्धति, समाज आदि किसीको भी उत्तरदायी समझें किन्तु तृतीय भूमिकामें तो विद्यार्थीको स्वयं ही उत्तरदायी बनना पड़ेगा। और चतुर्थ भूमिकामें तो यह भूल निभ ही नहीं सकती । इसे दूर करना ही पड़ता है। इस भूमिकामें आप और मैं सभी हैं । यह मंगल अवसर है, मंगल जीवन है । नये घरमें वास, विवाह, परदेश-प्रयाण आदिमें कोई खास समय मंगलमय माना जाता है, परन्तु विद्यार्थी-जीवनका तो प्रत्येक क्षण मांगलिक है:-उसकी चर्चा, वाचन, शोधन, सूझमें मांगल्य उमड़ता है। पहली तीन भूमिकाओं के तो वर्ष भी नियत हैं किन्तु चतुर्थ भूमिकामें इसका भी बंधन नहीं है। यह तो सदा मंगल है।। अनु०-मोहनलाल मेहता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001072
Book TitleDharma aur Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal Sanghavi, Dalsukh Malvania
PublisherHemchandra Modi Pustakmala Mumbai
Publication Year1951
Total Pages227
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Articles
File Size13 MB
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