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________________ समाजको बदलो १७५ - - अपना-अपना काम लेकर सन्त बालके पास जाते हैं और उनकी सलाह लेते हैं । देखने में सन्त बालने किसी पंथ, वेष या बाह्य आचारका परिवर्तन नहीं किया परंतु मौलिक रूपमें उन्होंने ऐसी प्रवृत्ति शुरू की है कि वह उनकी आत्मामें अधिवास करनेवाले धर्म और नीति-तत्त्वका साक्षात्कार कराती है और उनके समाजको सुधारने या बदलनेके दृष्टिबिन्दुको स्पष्ट करती है। उनकी प्रवृत्तिमें जीवन-क्षेत्रको छूनेवाले समस्त विषय आ जाते हैं । समाजकी सारी काया ही कैसे बदली जाय और उसके जीवनमें स्वास्थ्यका, स्वावलम्वनका वसन्त किस प्रकार प्रकट हो, इसका पदार्थ-पाठ वे जैन साधुकी रीतिसे गाँवगाँव घूमकर, सारे प्रश्नोंमें सीधा भाग लेकर लोगोंको दे रहे हैं। इनकी विचारधारा जाननेके लिए इनका 'विश्व-वात्सल्य ' नामक पत्र उपयोगी है और विशेष जानकारी चाहनेवालोंको तो उनके सम्पर्कमें ही आना चाहिए। __ तीसरे भाई मुसलमान है । उनका नाम है अकबर भाई । उन्होंने भी, अनेक वर्ष हुए, ऐसी ही तपस्या शुरू की है। बनास तटके सम्पूर्ण प्रदेशमें उनकी प्रवृत्ति विख्यात है। वहाँ चोरी और खून करनेवाली कोली तथा ठाकुरोंकी जातियाँ सैकड़ों वर्षोसे प्रसिद्ध हैं । उनका रोजगार ही मानो यही हो गया है। अकबर भाई इन जातियों में नव-चेतना लाये हैं। उच्चवर्णके ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य भी जो कि अस्पृश्यता मानते चले आये हैं और दलित वर्गको दबाते आये हैं, अकबर भाईको श्रद्धाकी दृष्टिसे देखते हैं। यह जानते हए भी कि अकबर भाई मुसलमान हैं, कट्टर हिन्दू तक उनका आदर करते हैं । सब उन्हें ' नन्हें बापू' कहते हैं । अकबर भाईकी समाजको सुधारनेकी सूझ भी ऐसी अच्छी और तीव्र है कि वे जो कुछ कहते हैं या सूचना देते हैं, उसमें न्यायकी ही प्रतीति होती है । इस प्रदेशकी अशिक्षित और असंस्कारी जातियोंके हजारों लोग इशारा पाते ही उनके इर्द-गिर्द जमा हो जाते हैं और उनकी बात सुनते हैं । अकबर भाईने गाँधीजीके पास रहकर अपने आपको बदल डाला है-समझपूर्वक और विचारपूर्वक । गाँवोंमें और गाँवोंके प्रश्नोंमें उन्होंने अपने आपको रमा दिया है। ऊपर जिन तीन व्यक्तियोंका उल्लेख किया गया है, वह केवल यह सूचित करनेके लिए कि यदि समाजको बदलना हो और निश्चित रूपसे नये सिरेसे गढ़ना हो, तो ऐसा मनोरथ रखनेवाले सुधारकोंको सबसे पहले आपको बदलना Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001072
Book TitleDharma aur Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal Sanghavi, Dalsukh Malvania
PublisherHemchandra Modi Pustakmala Mumbai
Publication Year1951
Total Pages227
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Articles
File Size13 MB
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