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________________ धर्म और समाज कपड़े दूसरोंके द्वारा दिये हुए कपड़ोंकी अपेक्षा परिमाणमें कम उपयोगमें आनेवाले, कम घिसनेवाले और कम फटनेवाले होते हैं । अपने हाथका धोखा कपड़ा दूसरोंके धोये हुए कपड़ोंकी अपेक्षा कम और देरीसे मलीन होता है । दान से प्राप्त घी, दूध, पुस्तक, कागज, पेन्सिल और सुँघनीकी अपेक्षा स्वश्रम या मजदूरी से प्राप्त वस्तुएँ परिमाण में कम उपयोगमें आती हैं और उनका बिगाड़ भी कम होता है । दूसरे लोग जो पगचंपी और तेलमर्दन करते हैं उसकी अपेक्षा यदि स्वयं अपने हाथों ही ये कार्य किये जायँ तो उसमें सुखशीलताका पोषण कम होगा । इसलिए विवेकपूर्वक स्वीकृत स्वश्रम व्यावहारिकता और सच्ची आध्यात्मिकताका मुख्य लक्षण और पोषक है । ९४२ सदैव दूसरों के हाथों पानी पीनेवाली और दूसरोंके पाँवोंसे चलनेवाली रानी या सेठानीसे यदि स्वयं पानी भरने या पैदल चलनेके लिए कहा जाय, अथवा ऐसा प्रसंग उपस्थित हो जाय, तो पहले तो उसके स्नायु ही ऐसा करनेके लिए इंकार करेंगे; और फिर बड़प्पन और प्रतिष्ठाका भूत भी इस कामके करने में बाधक होगा । राजा-महाराजा और धनिक जो कि स्वश्रमके आदी नहीं हैं, उन्हें यदि श्रम करनेके लिए बाध्य किया जाय तो प्रारंभ में उन्हें भी बहुत बुरा लगेगा । यद्यपि जैन साधु इतने अधिक सुकुमार या पराश्रयी नहीं होते हैं, फिर भी उनमें परापूर्वको एक भूत घुसा हुआ है, जो कि उन्हें स्वश्रमका विचार करते ही क्षुब्ध कर डालता है और इस विचारको आचरणमें लाते समय उन्हें कँपा देता है । परन्तु इस समय प्रति दिन बढ़ती जानेवाली त्यागकी विकृतिको रोकने के लिए स्वश्रमके तत्त्वके सिवाय दूसरा कोई उपाय नहीं दिखाई देता । इसलिए उसका इस उपायको अपनाने अथवा वनवास जैसी स्थितिको स्वीकार करनेमें ही त्राण है । अब त्यागकी मूर्तिके ऊपर भोगके सुवर्ण अलंकार अधिक समय तक शोभित नहीं रह सकते । } पर्युषण- व्याख्यानमाला अहमदाबाद, १९३१ Jain Education International अनुवादक - महेन्द्रकुमार For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001072
Book TitleDharma aur Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal Sanghavi, Dalsukh Malvania
PublisherHemchandra Modi Pustakmala Mumbai
Publication Year1951
Total Pages227
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Articles
File Size13 MB
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