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________________ स्वतंत्रताका अर्थ १२५ ही दलित और अस्पृश्य कहे जानेवाले लोगोंकी क्षुद्रता और निन्दनीयता रूढ हो गई थी। जीवनमें महत्त्वका भाग अदा करनेवाले विवाहके संबंध ऐच्छिक या गुणाश्रित शायद ही होते थे। गाँवोंमें ही न्याय करनेवाली और समाधान करानेवाली पंचायत-व्यवस्था और महाजनोंकी पुरानी संस्थाओंमें सेवाके बदले सत्ताने जोर पकड़ लिया था। समस्त देशमें शिक्षा सस्ती और सुलभ थी। लेकिन वह उच्च गिने जानेवाले वर्ण और वर्गको ही दी जाती थी और उन्हीं के लिए कुलपरंपरागत थी। दूसरी ओर देशका एक बहुत बड़ा भाग इससे बिल्कुल वंचित था और स्त्री-समाज तो अधिकांश विद्या और सरस्वतीकी पूजामें ही शिक्षा की इतिश्री समझता था। शिक्षाके अनेक विषय होनेपर भी वह ऐहिक जीवनमें उचित रस उत्पन्न नहीं करती थी, क्योंकि उसका उद्देश्य परलोकाभिमुख बन गया था । उसमें सेवा करनेकी अपेक्षा सेवा लेनेके भावोंका अधिक पोषण होता था । ब्रह्म और अद्वैतकी गगनगामी भावनाएँ चिन्तनमें अवश्य थीं परन्तु व्यवहार में उनकी छाया भी दृष्टिगोचर न होती थी। वैज्ञानिक शिक्षाका अभाव तो न था लेकिन वह सिर्फ कल्पनामें ही थी, प्रयोगके रूपमें नहीं । राजकीय स्थिति विना नायककी सेनाकी भाँति छिन्नभिन्न हो रही थी। पिता-पुत्र, भाई-भाई और स्वामी-सेवकमें राज्य-सत्ताका लोभ महाभारत और गीतामें वर्णित कौरव-पाण्डवोंके गृह-कलहको सदा सजीव रखता था। संपूर्ण देशकी तो बात ही क्या एक प्रांतमें भी कोई प्रजाहितैषी राजा शायद ही टिक पाता था। तलवार, भाला और बंदूक पकड़ सके और चला सके, ऐसा कोई भी व्यक्ति या अनेक व्यक्ति प्रजाजीवनमें गड़बड़ी उत्पन्न कर देते थे । परदेशी या स्वदेशी आक्रमणोंका सामना करनेके लिए सामूहिक और संगठित शक्ति निर्जीव हो चुकी थी। यही कारण था कि अंग्रेज भारतको जीतने और हस्तगत करनेमें सफल हुए। अंग्रेजी शासनके प्रारम्भसे ही देशकी संपत्ति विदेशमें जानी शुरू हो गई। यह क्रिया शासनकी स्थिरता और एकरूपताकी वृद्धिके साथ इतनी बढ़ गई कि आज स्वतंत्रता-प्राप्तिके उत्सवको मनानेके लिए भी आर्थिक समृद्धि नहीं रही । अंग्रेजी शासनका सबसे अधिक प्रभाव देशकी आर्थिक और औद्योगिक स्थितिपर पड़ा। यह सच है कि अंग्रेजी शासनने भिन्न भिन्न कारणोंसे रूढ़. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001072
Book TitleDharma aur Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal Sanghavi, Dalsukh Malvania
PublisherHemchandra Modi Pustakmala Mumbai
Publication Year1951
Total Pages227
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Articles
File Size13 MB
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