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________________ वर्तमान साधु और नवीन मानस ११७ अभूतपूर्व मानसों को उत्पन्न किया है और वे ही एक दूसरेपर विजय पानेके लिए समाज के अखाड़े में उतर पड़े हैं । यदि हम इन परस्परविरोधी दोनों मानसों का गठन करनेवाले शिक्षण, उसके विषय और उसकी प्रणालीके बारेमें कुछ जान लें, तो निश्चय हो जायगा कि अभी जो मानसिक भूकम्प आया है वह स्वाभाविक और अनिवार्य है । साधु लोग सीखते हैं । सारी जिन्दगी शिक्षा लेनेवाले साधुओं की नहीं है । उनके शिक्षक उन्हीं जैसे मनोवृत्तिके साधु होते हैं और ज्यादातर तो ऐसे पण्डित होते हैं जो कि बीसवीं सदी में जन्म लेकर भी बारहवीं या सोलहवीं सदीसे आगे शायद ही बढ़े हों । कमी साधुओंकी शिक्षाप्रणाली साधुओंकी शिक्षाका मुख्य विषय जो सबसे पहले उन्हें पढ़ाया जाता है, क्रिया-काण्डविषयक सूत्र हैं । इन सूत्रोंके सीखते और सिखाते समय एक ही दृष्टि सामने होती है कि वे स्वयं भगवान् महावीर के रचे हुए हैं, या पीछेके होनेपर भी ऐसे अचल हैं कि उनमें उत्पाद-व्ययका जैन सिद्धान्त भी गौण हो जाता है । इस क्रिया काण्डी शिक्षापर सर्वश्रेष्ठताकी छाप इस तरह श्रद्धाके हथोड़े मारमारकर बिठाई जाती है कि सीखनेवाला दूसरे सभी क्रियाकाण्डों को तुच्छ और भ्रामक मानने लगता है । इतना ही नहीं, वह अपने छोटेसे गच्छके सिवा दूसरे सहोदर और पड़ोसी गच्छोंके विधि-विधानोंको भी अशास्त्रीय गिनने लगता है । साधुओंके शिक्षणका दूसरा विषय धर्म और तत्त्वज्ञान है । धर्मके नामसे वे जो कुछ सीखते हैं उसमें उनकी एक ही दृष्टि आदिसे अन्त तक ऐसी दृढतासे पोषी जाती है कि उन्हें सिखाया जानेवाला धर्म पूर्ण है । उसमें कुछ भी कम ज्यादा करनेके लिए अवकाश नहीं और धर्मकी श्रेष्ठताके बारेमें उनके मनपर ऐसे संस्कार डाले जाते हैं कि जब तक वे लोग इतर धर्मोंके दोष न देखें और इतर धर्मोकी कमियाँ न बतलावें, तब तक उन्हें अपने धर्मकी श्रेष्ठताका विश्वास करनेका दूसरा कोई मार्ग दिखलाई नहीं पड़ता । जैन साहित्य में दाखिल हुई कोई भी घटना भले ही वह काल्पनिक हो, रूपक For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International
SR No.001072
Book TitleDharma aur Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal Sanghavi, Dalsukh Malvania
PublisherHemchandra Modi Pustakmala Mumbai
Publication Year1951
Total Pages227
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Articles
File Size13 MB
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