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________________ शास्त्र मर्यादा १०३ ४ कौन कौन धंधे जैनत्वके साथ ठीक बैठते हैं और कौन कौन जैनत्वके घातक हैं ? क्या खेतीबाड़ी, लुहारी, सुतारी ( बढ़ईगीरी ) और चमड़ेसम्बंधी काम, अनाजका व्यापार, जहाजरानी, सिपहगीरी, यन्त्रोंका काम वगैरह जैनत्वके बाधक हैं और जवाहिरात, बजाजी, दलाली, सट्टा, मिलमालिकी, व्याज- बट्टा आदि जैनत्वके बाधक नहीं हैं या कम बाधक हैं ? ऊपर दिये हुए चार प्रश्न तो इस तरहके और अनेक प्रश्नोंकी बानगी भर हैं । इसलिए इनका जो उत्तर होगा वह यदि तर्क और विचारशुद्ध हुआ, तो दूसरे प्रश्नों पर भी सुगमतासे लागू हो सकेगा । ये प्रश्न आज ही खड़े नहीं हुए हैं। कम-ज्यादा प्रमाणमें और एक अथवा दूसरे रूपमें हमारे जैनशास्त्रोंके इतिहासमें ये अवश्य मिल सकते हैं । जहाँ तक मैं समझता हूँ ऐसे प्रश्न उत्पन्न होनेका और उनका समाधान न मिलनेका मुख्य कारण जैनत्व और उसके विकास-क्रमके इतिहासका हमारा अज्ञान है । I जीवन में सच्चे जैनत्वका कुछ भी तेज न हो, केवल परम्परागत वेश, भाषा और तिलक चन्दनका जैनत्व ही जाने अनजाने जीवनपर लद गया हो और अधिकांशमें वस्तुस्थिति समझने जितनी बुद्धिशक्ति भी न हो, तो उक्त प्रश्नोंका समाधान नहीं होता। और यदि जीवनमें थोड़ा बहुत सच्चा जैनत्व तो उद्भूत हुआ हो, पर विरासत में मिले प्रस्तुत क्षेत्रके अतिरिक्त दूसरे विशाल और नये नये क्षेत्रोंमें खड़ी होनेवाली समस्याओंको सुलझाने तथा वास्तविक जैनत्वकी चाबीसे उलझनों के तालोंको खोलनेकी प्रज्ञा न हो, तो भी इन प्रश्नोंका समाधान नहीं होता । इससे आवश्यकता इस बातकी है कि सच्चा जैनत्व क्या है, इसे समझ कर जीवन में उतारने और सभी क्षेत्रोंमें खड़ी होनेवाली कठिनाइयोंको हल करनेके लिए जैनत्वका किस किस रीतिसे उपयोग किया जाय, इसका ज्ञान बढ़ाया जाय । समभाव और सत्यदृष्टि अब हमें देखना चाहिए कि सच्चा जैनत्व क्या है और उसके ज्ञान तथा प्रयोगद्वारा ऊपर के प्रश्नोंका अविरोधी समाधान किस रीतिसे हो सकता है । सच्चा जैनत्व है समभाव और सत्यदृष्टि, जिनका जैनशास्त्र क्रमशः अहिंसा तथा अनेकान्तदृष्टि के नामसे परिचय देते हैं । अहिंसा और अनेकान्तदृष्टि ये Jain Education International * For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001072
Book TitleDharma aur Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal Sanghavi, Dalsukh Malvania
PublisherHemchandra Modi Pustakmala Mumbai
Publication Year1951
Total Pages227
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Articles
File Size13 MB
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