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________________ जीवन-दृष्टिमें मौलिक परिवर्तन इतिहासके आरंभमें वर्तमान जीवन-पर ही अधिक भार दिया जाता था। पारलौकिक जीवनकी बात हम सुख-सुविधामें और फुर्सतके समय ही करते थे। वेदोंके कथनानुसार 'चरैवैति चरैवैति चराति चरोभगः ' ( अर्थात् चलो, चलो, चलनेवालेका ही भाग्य है) को ही हमने जीवन का मूलमंत्र माना है। पर आज हमारी जीवन-दृष्टि बिल्कुल बदल गई है। आज हम इस जीवनकी उपेक्षा कर परलोकका जीवन सुधारनेकी ही विशेष चिन्ता करते हैं । इसका दुष्परिणाम यह हुआ है कि इस जीवनमें परिश्रम और पुरुषार्थ करनेकी हमारी आदत बिल्कुल छूट गई है। पुरुषार्थकी कमीसे हमारा जीवन बिल्कुल कृत्रिम और खोखला होता जा रहा है। जिस प्रकार जगलमें चरनेवाली गाय-बकरीकी अपेक्षा घरपर बँधी रहनेवाली गाय-बकरीका दूध कम लाभदायक होता है; उसी प्रकार घरमें कैद रहनेवाली स्त्रियोंकी सन्तान भी शक्तिशाली नहीं हो सकती। पहले क्षत्रियोंका बल-विक्रम प्रसिद्ध था, पर अब विलासिता और अकर्मण्यतामें पले राजा-रईसोंके बच्चे बहुत ही अशक्त और पुरुषार्थहीन होते हैं। आगेके क्षत्रियोंकी तरह न तो वे लम्बी पैदलयात्रा या घुड़सवारी कर सकते हैं और न और कोई श्रम ही । इसी प्रकार वैश्योंमें भी पुरुषार्थकी हानि हुई है । पहले वे अरब, फारस, मिस्र, बाली, सुमात्रा, जावा आदि दूर-दूरके स्थानोंमें जाकर व्यापार-वाणिज्य करते थे। पर अब उनमें वह पुरुषार्थ नहीं है, अब तो उनमेंसे अधिकांशकी तोंदें आराम-तलबी और आलस्यके कारण बढ़ी हुई नजर आती हैं । आज तो हम जिसे देखते हैं वही पुरुषार्थ और कर्म करनेके बजाय धर्म-कर्म और पूजा-पाटके नामपर ज्ञानकी खोजमें व्यस्त दीखता है । परमेश्वरकी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001072
Book TitleDharma aur Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal Sanghavi, Dalsukh Malvania
PublisherHemchandra Modi Pustakmala Mumbai
Publication Year1951
Total Pages227
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Articles
File Size13 MB
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