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________________ विकासका मुख्य साधन ८३ प्राप्त है, वे ही अधिकतर मानसिक विकासमें मंद होते हैं । खास-खास धनवानोंकी सन्तानों, राजपुत्रों और जमींदारोंको देखिए । बाहरी चमक-दमक और दिखावटी फुर्ती होनेपर भी उनमें मनका, विचारशक्तिका, प्रतिभाका कम ही विकास होता है । बाह्य साधनोंकी उन्हें कमी नहीं, पढ़ने लिखनेके साधन भी पूरे प्राप्त हैं, शिक्षक-अध्यापक भी यथेष्ट मिलते हैं, फिर भी उनका मानसिक विकास एक तरहसे रुके हुए तालाबके पानीकी तरह गतिहीन होता है। दूसरी ओर जिसे विरासतमें न तो कोई स्थूल सम्पत्ति मिलती है और न कोई दूसरे मनोयोगके सुभीते सरलतासे मिलते हैं, उस वर्ग से असाधारण मनोविकासवाले व्यक्ति पैदा होते हैं । इस अन्तरका कारण क्या है ? होना तो यह चाहिए था कि जिन्हें साधन अधिक और अधिक सरलतासे प्राप्त हों वे ही अधिक और जल्दी विकास प्राप्त करें । पर देखा जाता है उल्टा । तब हमें खोजना चाहिए कि विकासकी असली जड़ क्या है ? मुख्य उपाय क्या है कि जिसके न होनेसे और सब न होनेके बराबर हो जाता है । __ जवाब बिलकुल सरल है और उसे प्रत्येक विचारक व्यक्ति अपने और अपने आस-पास वालों के जीवन में से पा सकता है। वह देखेगा कि जवाबदेही या उत्तरदयित्व ही विकासका प्रधान बीज है । हमें मानस-शास्त्रकी दृष्टिसे देखना चाहिए कि जवाबदेहीमें ऐसी क्या शक्ति है जिससे वह अन्य सब विकासके साधनोंकी अपेक्षा प्रधान साधन बन जाती है । मनका विकास उसके सत्व-अंशकी योग्य और पूर्ण जागृतिपर ही निर्भर है । जब राजस तामस अंश सत्वगुणसे प्रबल हो जाता है तब मनकी योग्य विचारशक्ति या शुद्ध विचारशक्ति आवृत या कुंठित हो जाती है । मनके राजस तथा तामस अंश बलवान् होनेको व्यवहारमें प्रमाद कहते हैं। कौन नहीं जानता कि प्रमादसे वैयक्तिक और सामष्टिक सारी खराबियाँ होती हैं। जब जवाबदेही नहीं रहती तब मनकी गति कुंठित हो जाती है और प्रमादका तत्त्व बढ़ने लगता है जिसे योग-शास्त्रमें मनकी क्षित और मूढ़ अवस्था कहा है । जैसे शरीर-पर शक्तिसे अधिक बोझ लादनेपर उसकी स्फूर्ति, उसका स्नायुबल, कार्यसाधक नहीं रहता वेसे ही रजोगुणजनित क्षिप्त अवस्था और तमोगुणजनित मूढ़ अवस्थाका बोझ पड़नेसे मनकी स्वाभाविक सत्वगुणजनित विचार-शक्ति निष्क्रिय हो जाती है । इस तरह मनकी निष्क्रियताका मुख्य कारण राजस और तामस गुणका उद्रेक है। जब Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001072
Book TitleDharma aur Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal Sanghavi, Dalsukh Malvania
PublisherHemchandra Modi Pustakmala Mumbai
Publication Year1951
Total Pages227
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Articles
File Size13 MB
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