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________________ ५४ नं० भाषाटिप्पणानां विषयानुक्रमणिका । पृ० पं० नं. ० दर्शिन्' विशेषण का प्रयोग किया है इससे धर्मकीर्ति के ऊपर उनके आदर की सूचना ७४ 'प्राणादिमत्त्वात्' इस हेतु की सत्यता के बारे में इतर दार्शनिकों के साथ बौद्धों के मतभेद का दिग्दर्शन ७५ हेतु के नियामक रूप के बारे में धर्मकीर्ति का जो मत हेमचन्द्र ने उद्धृत किया है उसकी निर्मूलता के बारे में शंका और समाधान । अन्वय और ७८ वैदिक, बौद्ध और जैन परंपरागत परार्थानुमान की चर्चा का इतिहास ७६ परार्थानुमान के प्रयोग प्रकारों के बारे में वैदिक, बौद्ध और जैन परंपरा के मन्तव्यों की तुलना ८० परार्थानुमान में पक्ष प्रयोग करने न करने के मतभेद का दिग्दर्शन । हेमचन्द्र द्वारा अपने मन्तव्य की पुष्टि में वाचस्पति का अनुकरण ८१ परार्थानुमान स्थल में प्रयोग परिपाटी के बारे में दार्शनिकों के मन्तव्यों का दिग्दर्शन ८२ अनुमान के शब्दात्मक पचि अवयवों के वर्णन में हेमचन्द्र कृत अक्षपाद के अनुकरण की सूचना ८३ हेत्वाभास के विभाग के बारे में दार्श Jain Education International ८५ २६ ८६ द्वितीयाध्याय का प्रथमाह्निक | ६२ १ १ ६२ २० ६२ १७ ६४ १४ ६६ ६१ निर्विकल्प के बारे में दार्शनिकों के मन्तव्य की तुलना ६२ ज्ञान की स्वप्रकाशकता के विषय में दार्शनिकों के मन्तव्य १३० ६३ प्रत्यक्ष विषयक दार्शनिकों के मन्तव्य १३२ ६४ प्रतिसंख्यान १२५ व्यतिरेक विषयक जैन-बौद्ध मन्तव्यों का समन्वय फळ, . ७६ पक्ष का लक्षण, लक्षणगत पदों का पक्ष के आकार और प्रकार इन बातों में दार्शनिकों के मन्तव्यों का ऐतिहासिक अवलोकन १ ७७ दृष्टान्त के लक्षण और उपयोग के बारे में नैयायिक और जैन-बौद्ध मन्तव्यों का दिग्दर्शन ७ ७ १३५ ३० निकों की विप्रतिपत्ति का ऐतिहासिक अवलोकन ८४ दार्शनिकों के असिद्धविषयक मन्तव्य का तुलनात्मक वर्णन वृद्धि पत्रक | ८५ दार्शनिकों के विरुद्धविषयक मन्तव्य का तुलनात्मक दिग्दर्शन ८६ अनैकान्तिक के बारे में दार्शनिकों के मतभेदों का ऐतिहासिक दृष्टि से तुलनात्मक विवेचन ८७ दृष्टान्ताभास के निरूपण का ऐतिहासिक दृष्ट से तुलनात्मक अवलोकन दूषण दूषणाभास का ऐतिहासिक दृष्टि से तुलनात्मक विवेचन वादकथा का इतिहास ८ ६० निग्रह स्थान तथा जय-पराजय व्यवस्था का तुलनात्मक वर्णन ६५ हेमचन्द्र की प्रमाण- फल व्यवस्था में उनका वैयाकरण ६६ आत्मप्रत्यक्ष का विचार ६७ अनुमानप्रमाण का ऐतिहासिक दृष्टि से अवलोकन ६८ दिङ्नाग का हेतुचक्र For Private & Personal Use Only पृष्ठं पं० ८६ १२ ८७ २६ ६० १५ ६६ १४ ६८ १६ ६६ १५ १०० १४ १०३ २६ १०८ १५ ११५ २८ ११६ १४ १३६ १ १३६ ११ १३८ १ १४२ १४ www.jainelibrary.org
SR No.001069
Book TitlePramana Mimansa Tika Tippan
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorSukhlal Sanghavi, Mahendrakumar Shastri, Dalsukh Malvania
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1995
Total Pages340
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Nyay, Nay, & Praman
File Size24 MB
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