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________________ प्रस्तावना हेमचन्द्र ने स्वागत किया था। उस प्रसंग का उनका श्लोक प्रसिद्ध है। यह घटना वि० सं० ११९१-९२ में (ई० स० ११३६ के प्रारम्भ ) में घटित हुई होगी। उस समय हेमचन्द्र की आयु छयालीस-सैंतालीस वर्ष की होगी। जयसिंह सिद्धराज और हेमचन्द्र का सम्बन्ध कैसा होगा इसका अनुमान करनेके लिए प्रथम आधारभूत अंथ 'कुमारपाल प्रतिबोध' से कुछ जानकारी मिलती है "बुधजनों के चूड़ामणि भुवन प्रसिद्ध सिद्धराज को सम्पूर्ण संशय स्थानों में वे प्रष्टव्य हुए । मिथ्यात्व से मुग्धमति होने पर भी उनके उपदेश से जयसिंह राजा जिनेन्द्र के धर्म में अनुरक्तमना हुआ। उनके प्रभाव में आकर ही उसने उसी नगर ( अणहिल्लर ) में रम्य 'राजविहार' बनाया और सिद्धपुर में चार जिन प्रतिमाओं से समृद्र 'सिद्धविहार' निर्मित किया । जयसिंह देव के कहने पर इन मुनीन्द्र ने 'सिद्धहेम व्याकरण' बनाया जो कि निःशेष शब्द लक्षण का निधान है। अमृतमयी वाणी में विशाल उन्हें न मिलने पर जयसिंहदेव के चित्त में एक क्षण भी सन्तोष नहीं होता था । -कुमारपाल प्रतिबोध पृ० २२ । इस कथन में बहुत सा ऐतिहासिक तथ्य दिखाई देता है। हेमचन्द्र और जयसिंह का सम्बन्ध क्रमशः गाढ़ हुआ होगा, और हेमचन्द्र की विद्वत्ता एवं विशद प्रतिपादन शैली से (जो कि उनके ग्रन्थों में प्रतीत होती है ) वे उसके विचारसारथि हुए होगे। जयसिंह के उत्तेजन से हेमचन्द्र को व्याकरण, कोश, छन्द तथा अलङ्कार शास्त्र रचने का निमित्त प्राप्त हुआ और अपने राजा का कीर्तन करनेवाले, व्याकरण सिखानेवाले तथा गुजरात के लोकजीवन के प्रतिबिम्ब को धारण करनेवाले 'व्याश्रय' नामक काव्य रचने का मन हुआ। इष्ट देवता की उपासना के विषय में जयसिंह कट्टर शैव ही रहा यह 'कुमारपाल प्रतिबोध' के 'मिच्छत्त-मोहिय-मई'—मिथ्यात्वमोहितमति विशेषण से ही फलित होता है । परन्तु ऐसा मानने का कारण है कि धर्म विचारणा के विषय में सार ग्रहण करने की उदार विवेक-बुद्धि से हेमचन्द्र की चर्चाएँ होती होंगी; और बहुत सम्भव है कि इधर धर्मों पर आक्षेप किए बिना ही उन्होंने जैन-धर्म के सिद्धान्तों को समझाकर जयसिंह को उनमें 'अनुरक्त मन वाला' किया हो। 'प्रबन्ध चिन्तामणि' के 'सर्वदर्शनमान्यता' नामक प्रबन्ध का यहाँ उल्लेख करना उचित होगा-"संसार सागर से पार होने का इच्छुक, श्रीसिद्धराज 'देवतत्त्व', और 'पात्रतत्त्व' की जिज्ञासा से सब दार्शनिकों से पूछता है, और सब अपनी स्तुति तथा दूसरों की निन्दा करते हैं। आचार्य हेमचन्द्र पुराणों में से कथा कहकर, साँढ़ बना हुआ पति सच्ची ओषधि १ भूमि कामगवि ! स्वगोमयरसैरासिञ्च रत्नाकरा । मुक्तास्वस्तिकमातनुध्वमुडुप त्वं पूर्णकुम्भी भव ॥ धृत्वा कल्पतरोदलानि सरलैर्दिग्वारणास्तोरणान्याधत्त स्वकरैर्विजित्य जगती नन्वेति सिद्धाधिपः॥ प्रभावक चरित पृ. ३०० २ द्वयाश्रय (सर्ग १५, श्लो० १६ ) के अनुसार सिद्धपुर में जयसिंह ने चरम तीर्थंकर महावीर स्वामी का मन्दिर बनवाया था। अन्य उल्लेखों के लिए देखो काव्यानुशासन प्रस्तावना १८८ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001069
Book TitlePramana Mimansa Tika Tippan
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorSukhlal Sanghavi, Mahendrakumar Shastri, Dalsukh Malvania
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1995
Total Pages340
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Nyay, Nay, & Praman
File Size24 MB
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