SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 323
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६. भाषाटिप्पणगत शब्दों और विषयों की सूची। [ऊ ] उह ७६.२६ देखो तर्क जन्यप्रत्यक्ष १३२.१४ जयपराजयव्यवस्था - एकत्ववितर्क ३३.२१ ब्राह्मण परम्परा के अनुसार जय के लिए स्वपक्षसिद्धि आवश्यक नहीं। एक का कणाद १.७ पराजय दूसरे का जय १२१. २५ कथा धर्मकीर्तिकृत व्यवस्था-जय के लिए निर्दोष साधन का प्रयोग आवश्यक । एक का पराब्राह्मण-श्रमण परम्पराएँ और उनका जय ही दूसरे का जय नहीं १२२. १. साहित्य १०८. १५ देखो वादकथा जैनाचार्य अकलङ्क के मतानुसार-एक पक्ष कथा ११५. २९. की सिद्धि से जय । एक पक्ष की सिद्धि दूसरे कथाभास ११८.२४ की असिद्धि के बिना नहीं १२२. १७ कर्गशष्कुली ४०.१५ कर्मेन्द्रिय ४०.२४ हेमचन्द्र १२३. १९ कल्पना जल्प ११६. २ देखो दूषण-दूषणाभास शब्द के अर्थ ५१. ८ . जाति १०६. २५; ११०. ९, ११३. १६ कारणलिङ्गक (अनुमान ) देखो दूषण-दूषणाभास धर्मकीर्ति नहीं मानते =५. २१ जात्युत्तर ११३. १३; ११४. २२ कार्य (लिङ्ग ) -३ २८ जीवस्वसिद्धि ४२.२ कार्यलिङ्गक (अनुमान ) जैनज्ञानप्रक्रिया प्राणादि हेतु की बौद्धोद्भावित असाधकता ८६.. आगमिक और तार्किक प्रक्रिया में क्या भेद है ? कार्यसम (जाति) ११. १२ १६. २९ कालसम (जाति) ११४४ जैनागम में तार्किक चर्चा भद्रबाहु के बाद की कालातीत: १३ २०.३ कालात्ययापदिष्ट..३ आगम में सर्वप्रथम आर्यरक्षित ने तार्किक केवलदर्शन १२६. १२ प्रमाण चतुष्टय के आधार पर पञ्चज्ञान की क्रिया १३६. ४ चर्चा की २०. १६ क्लेशावरण ३२. १५ उमास्वातिकृत पञ्चज्ञान का प्रमाणद्वय में क्षणिकरवज्ञान ३२.१७ समावेश २०. १९ संकलना के समय में स्थानाङ्ग और भगवती में खण्डन १०६.२२ । प्रमाणद्वय और प्रमाणचतुष्टय का प्रवेश २०. २२ आर्यरक्षित के द्वारा मति और श्रुत का प्रत्यक्ष गुण ५६.९ देखो द्रव्य और आगम प्रमाण में समावेश २१.६ उमास्त्राति के द्वारा मतिश्रुत में अनुमानादि का चक्रक ६६२ समावेश २१. १२ चक्षुर्दर्शन १२८. 10 पूज्यपाद २१. १५ चतरङ्गवाद ११७.२० देखो वादकथा नन्दीसूत्रकार के द्वारा पञ्चज्ञानका प्रत्यक्ष चित्त ३२. १४; ३४.८ और परोक्ष में समावेश २१. १० चिन्ता २३. ४ नन्दीकारके द्वारा उमास्वाति और आयरक्षित छल ११०.९,११४.२९ के मन्तव्यका लौकिक दृष्टिसे समन्वय २१. १९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001069
Book TitlePramana Mimansa Tika Tippan
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorSukhlal Sanghavi, Mahendrakumar Shastri, Dalsukh Malvania
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1995
Total Pages340
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Nyay, Nay, & Praman
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy