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________________ सम्पादन विषयक वक्तव्य तथा ऐतिहासिक दृष्टिपूत है। श्री परीख ने कुछ ही समय पहले हेमचन्द्राचार्यकृत काव्यानुशासन ग्रंथ का विशिष्ट संपादन किया है और उस ग्रंथ की भूमिका रूप, जो स्वतंत्र एक ग्रंथ के जैसा ही बहुत विस्तृत, अंग्रेजी निबन्ध लिखा है उसमें हेमचन्द्राचार्य के व्यक्तित्व के विषय में उन्होंने बहुत कुछ विस्तार के साथ लिखा है। अतएव उनका यह संक्षिप्नलेखन बिलकुल साधिकार है। इस तरह आचार्य हेमचन्द्र की इस अधूरी कृति के प्रकाशन में बन सके उतनी विशिष्टता लाने का प्रयत्न करके उसे पूर्ण जैसी बनाने की चिरकालीन भावना भी अनेक छोटे बड़े विनों को लांघकर आज पूर्ण होती है। पर, मुझे स्वीकार करना चाहिए कि मित्रों का साथ न होता तो यह भावना भी मूलग्रन्थ की तरह अधूरी ही रह जाती। २. प्रति परिचय प्रस्तुत संस्करण में उपयुक्त प्रतियों का परिचय इस प्रकार है ता०-जिस ताडपत्रीय प्रति की फोटो काम में लाई गई है वह जेसलमेरस्थ किला गत भाण्डार की पोथी नं०८४ है। उसमें कुल १३७ पत्र हैं जिनमें से १११ पत्रों में मूल सूत्रपाठ तथा सवृत्तिक प्रमाणमीमांसा अलग अलग हैं। बाकी के पत्रों में परीक्षामुख आदि कुछ अन्य न्यायविषयक ग्रन्थ हैं। इस प्रति की लम्बाई १५"४२ है। प्रति के अन्त में और कोई उल्लेख नहीं है । इसमें टिप्पणी है । यह प्रति दो विभागों में लिखी गई है। प्रत्येक पृष्ठ पर कम से कम तीन और अधिक से अधिक पाँच पंक्तियाँ हैं और प्रत्येक पंक्ति में ७० अक्षर हैं। जहाँ पत्र के टेढ़ेपन के कारण आधी पंक्तियाँ हैं वहाँ ३५ अक्षर हैं। इस प्रति की फोटो २२ मेटों में ली गई है । लेट की लम्बाई चौड़ाई १०"४१२' है। डे०-यह प्रति अहमदाबाद के डेला उपाश्रय की है। इसमें कुल ३३ पत्र हैं। इसकी लम्बाई १०" और चौड़ाई ४३ है। प्रत्येक पृष्ठ पर १५ पंक्तियाँ तथा प्रत्येक पंक्ति में अधिक से अधिक ६४ अक्षर हैं। प्रत्येक पत्र का मध्यभाग खाली है। मार्जिन में बहुत ही बारीक अक्षरों में कहीं कहीं टिप्पण हैं जो इस संस्करण में ले लिए गए हैं। इस प्रति का अन्त का उल्लेख प्रमाणमीमांसा पृ० ६४ की टिप्पणी में छपा है उससे मालूम होता है कि यह प्रति संवत् १७०७ में पाटन में लिखी गई है। सं-मू०-इस प्रति का विशेष परिचय अभी मेरे पास यह लिखते समय नहीं है। ३. विशेषताएँ प्रस्तुत संस्करण की कुछ विशेषताएँ ऐसी हैं जिनका संक्षेप में निर्देश करना आवश्यक है। वे क्रमशः इस प्रकार हैं पहली विशेषता तो पाठ-शुद्धि की है। जहाँ तक हो सका मूलग्रन्थ को शुद्ध करने व प्रन्थकार सम्मत पाठ के अधिक से अधिक समीप पहुँचने का पूरा प्रयत्न किया गया है। ताड़पत्र और डेला की प्रति के जहाँ जहाँ दो पाठ मिले वहाँ अगर उन दोनों पाठों में समबलता जान पडी तो उस स्थान में ताडप्रति का पाठ ही मल वाचना में रखा है और डेला प्रति का पाठ पाठान्तर रूप से नीचे फुटनोट में। इस तरह ताइप्रति का प्रामाण्य मुख्य रूप से मान लेने पर भी जहाँ डेला प्रति का पाठ भाषा, अर्थ और ग्रन्थान्तर के संवाद आदि के औचित्य की ष्टि से अधिक उपयुक्त जान पड़ा वहाँ सर्वत्र डेला प्रति का पाठ ही मूल वाचना में रखा है, भौर साइप्रति तथा मुद्रित प्रति का पाठान्तर नीचे रखा है। मूल सूत्रपाठ की दोनों प्रतियों में कहीं कहीं सूत्रों के भेदसूचक चिह्न में अंतर देखा गया है। ऐसे स्थलों में उन सूत्रों की व्याख्यासरणी देखकर ही यह निश्चय किया गया है कि वस्तुतः ये भिन्न भिन्न सूत्र है, या गलती से एक ही सूत्र के दो अंश दो सूत्र समझ लिये गये हैं। ऐसे स्थानों में निर्णीत संख्यासूचक नंबर मूलवाचना में देकर पाये जानेवाले और भेद नीचे टिप्पण रूप से दे दिये गये हैं। , Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001069
Book TitlePramana Mimansa Tika Tippan
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorSukhlal Sanghavi, Mahendrakumar Shastri, Dalsukh Malvania
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1995
Total Pages340
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Nyay, Nay, & Praman
File Size24 MB
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