________________
प्रमाणमीमांसायाः
॥ भा पा टि प्प णा नि ॥
---c
onscortor
---
10
हैमी प्रमाणमीमांसा विशयतेऽथ टिप्पणैः।
ऐतिह्म-तुलनास्पृग्भी राष्ट्रभाषोपजीविभिः ॥ पृ० १. पं० २. 'तायिने'-तुलना-"प्रणम्य शास्त्रे सुगताय तायिने"-प्रमाणस० १. १. "वायिनामिति स्वाधिगतमार्गदेशकानाम् । यदुक्तम्-'तायः स्वदृष्टमार्गोक्तिः' (प्रमाणवा० २. १४५.) इति तत् विद्यते येषामिति । अथवा ताय: संतानार्थः ।"-बोधिचर्या. प० पृ० ७५
पृ० १.५० ६. 'पाणिनि-पाणिनि का सूत्रात्मक अष्टाध्यायी शब्दानुशासन प्रसिद्ध है। पिङ्गल का छन्दःशास्त्र प्रसिद्ध है। कणाद और अक्षपाद क्रम से दशाभ्यायो वैशेषिक- . सूत्र और पश्चाभ्यायी न्यायसूत्र के प्रणेता हैं।
पृ० १. पं० ६. 'वाचकमुल्य'-उमास्वाति और उनके तत्त्वार्थसूत्र के बारे में देखो मेरा लिखा गुजराती तत्त्वार्थविवेचन का परिचय ।
पृ० १.५० ११. 'अकलङ्क-प्रकलङ्क ये प्रसिद्ध दिगम्बराचार्य हैं। इनके प्रमाणसंग्रह, न्यायविनिश्चय, सिद्धिविनिश्चय, लघीयत्रयी आदि जैनन्यायविषयक अनेक प्रकरण प्रन्थ हैं। इनका समय ईसवीय अष्टम शताब्दी है। . पृ० १. पं० ११. 'धर्मकीर्ति'-धर्मकीर्ति ( ई० स० ६२५ ) बौद्ध तार्किक हैं। इनके प्रमाणंवार्तिक, हेतुबिन्दु, न्यायबिन्दु, वादन्याय आदि प्रकरणग्रन्थ हैं।
- पृ० १. पं० १२. 'नास्य स्वेच्छा'-तुलना-“वचनं राजकीयं वा वैदिकं वापि विद्यते ।" श्लोकवा. सू० ४. श्लो• २३५ ।
पृ० १.५० १४. 'वर्णसमूहा'-तुलना-"शास्त्र पुनः प्रमाणादिवाचकपदसमूहो व्यूहविशिष्टः, पदं पुनर्वर्णसमूहः, पदसमूहः सूत्रम् , सूत्रसमूहः प्रकरणम्, प्रकरणसमूह प्रातिकम्, माहिकसमूहोऽन्यायः, पञ्चाध्यायी शास्त्रम् ।"-न्यायवा० पृ० १ ... ' पृ० १.५० १७. 'अथ प्रमाण-भारतीय शास्त्र-रचना में यह प्रणाली बहुत पहिले से चली आती है-कि सूत्ररचना में पहिला सूत्र ऐसा बनाया जाय जिससे अन्य का
15
20
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org