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________________ शब्दार्थस्वरूप (अ.) ४२. शब्दार्थालङ्कार ( अ ) ४०१. शब्दालङ्कार (अ.) २९५, ३२८, ४०१; (वि.) ४०५. ५६० शम (अ.) १२१, १२५, १२६ (लक्षण). शमकथा (अ.) २३१. (वि.) १२१. शमरतिक्रोध (वि.) १६८. शम - शान्स शम्पा (अ) ४४९. शम्भलीवृत्तान्त (वि.) ४४३. शय्या (अलंकार) (वि.) ४०५. शरद (वि.) १८८. शरीर (अ.) ४३४, ४३५; (वि.) ४३५. शीत (वि.) ३३५. शीतसेवन (अ.) १११. शर्व (वि.) २२७. शस्त्रसंपात (अ.) ११६. शाक्य (वि.) ४४२. शाक्यसिंह (वि.) २२८. शील (अ.) ४१३. शुक्र (वि.) १९४. शान्त (अ.) १०६, १२० (लक्षण), १२१, १२२, १२४, १६७, २६३ (वि.) १२३, १२४, २५८, ३३५. शान्तप्रधाना (प्रकृति) (अ.) १७६. शान्तरस ( अ ) २६७. शान्त- त - रौद्र (अ.) १६१. शान्तानुभाव (अ.) १६२. शापहेतुक - प्रवास (अ.) ११३. शबरी (भाषा) (अ.) २. शारीरीवीणा (वि.) ३३४. शार्दूलविक्रीडित (वि.) २८८, ४६०. शास्त्र (अ.) ७. शास्त्रकार (अ.) १. शास्त्र - प्रयोजन ( अ ) ३. Jain Education International शास्त्रमात्र प्रसिद्धत्व (अ.) २२६, २२७ (वि.) २२६. शास्त्रसमयपरिपालन (अ.) १. शास्त्रीयन्याय (अ.) २२५. शिक्षा (अ.) १३, १४ (लक्षण); (वि.) ९२. शिङ्गक (अ.) ४४५, ४४६ (लक्षण); (वि.) ४४६, ४४७. शिल्पकारिका (वि.) ४४४. शिशिर (वि.) १९१. शिशिर - वसन्त (वि.) १९६० शिशिरादि - उत्तरायण (वि.) १८७. शिशुपाल (वि.) ४५८. शुचि (वि.) १९४. शुद्ध (संशय) (वि.) ३८५. शुष्कोष्ठकण्ठत्व (अ.) ११८. शृङ्गवत् (गिरि) (वि.) १८१. शृङ्गार (अ.) १०३, १०६ (लक्षण), १०७, १०८, १४३, १५३, १६२, १६३, १६६, १६७, १६८, १७७, २६३, २८९, २९३, ४१२, ४२२; (वि) ९३, ९४, १२४, १५३, १६४, १७७, २५८, २८७, २९३, ३३५, ३३६, ४६०. शृङ्गार - प्रधाना (प्रकृति) (अ.) १७६. शृङ्गार - बीभत्स ( अ ) १६१. शृङ्गारादि (अ.) १५९. शृङ्गाराभास (वि.) १४७, १५३. For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001066
Book TitleKavyanushasana Part 1
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRasiklal C Parikh
PublisherMahavir Jain Vidyalay
Publication Year1938
Total Pages631
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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