SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 571
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ लक्षण). रिसा (म.) १२४. लज्जा (अ.) ४१३; (वि.) १३५. रीति (अ.) २९२; (वि.) २९०, ४०५. लम्पाक (वि.) १८३. रीत्यन्तर (वि.) २७५. लम्भाङ्किता (अ.) ४६५. रुक्मिणी (अ.) ४२१; (वि.) ८१. लय (वि.) ९९. रुक्षाभिधान (वि.) ३३५. लयपरिध्वक्वणादि (वि.) ४४८. रुधिर (अ.) ११६.. लययतिस्वरूपादिक (वि.) ४४७. रूढिभ्रान्ति (वि.) २२६. लयादिव्यवस्था (वि.) ४४७. रूप (वि.) २२८. ललित (अ.) ४०६, ४०८ (लक्षण), रूपक (अलंकार) (अ.) १४९, २०७, २०८, ४२४, ४२७ ( सत्त्वजनीअलंकार ३४४, ३४९ (लक्षण), ३५०, ३९१, ४००, ४०१; (वि.) १५१, ३३९, ललिताभिनयारिमका (अ.) ४३६. ३५०, ३५१, ३९७. लल्ल (वि.) ३३५. रूपक (अ.) ४४५; (वि.)१०१, ४४७. लवली (वि.) १८२. रूपक-अनुप्रास (अ.) ४०१. लाटजनवल्लभ (अनुप्रास) (अ.) २९६. रैवतकहद (वि.) ४५९. लाटानुप्रास (अ.) २०९, २९६ (लक्षण); रोग (वि.) ३३५. (वि.) २०९. रोमाञ्च (अ.) १०९, १२०, १४४, | लावणसमुद्र (वि.) १८०. १४६. लिङ्ग (अ.) ६४, ३२४; (वि.) ९४. रोष (अ.) १२६. लीला (अ.) ४२४-४२५ (लक्षण). रौद्र (अ.) १०३, १०६ (लक्षण), ११६, लुप्तोपमा (अ.) ३४२ (लक्षण); (वि.) ११८, १२४, २९०, २९३; (वि.) लेखलेखन (अ.) १११. १२२, १२४, २९३, ३३५, लोक (अ.) ७, ८८; (वि.) ९१, ९५, ३३६, ४६०. १४७. रौद्रप्रधाना (प्रकृति) (अ.) १७६. . | लोकभाषा (वि.) ४४७. रौद्रादि (वि.) २८७, २९२. लोकमात्रप्रसिद्धत्व (अ.) २२६; (वि.) लङ्का (वि.) १९. लक्षण (अ) ३४८; (वि.) ४३५. लोकयात्राविद् (वि.) १८७. लक्षणा (शक्ति) (अ.) ५८, ६६ ; (वि.) | लोकव्यवहार (वि.) १०२. ___५१, ५२. लोकसीमातिकम (वि.) २८६. लक्ष्म्य ङ्क (वि.) ४५७. लोकोत्तर-कविकर्मन् (अ.) ३. लक्ष्य-अर्थ (अ.) ४५ (लक्षण). लोप (अ.) ३४४, ३४५. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001066
Book TitleKavyanushasana Part 1
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRasiklal C Parikh
PublisherMahavir Jain Vidyalay
Publication Year1938
Total Pages631
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy