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________________ ५५० भावन (वि.) ९७. भावपूर्वकत्व (वि.) ९१. भावप्रशम (अ.) १२७, १२८. भावाभास (अ.) १४७, १४८, १४९, मगध (वि.) १८२. मङ्गलाङ्कता (वि.) ४५७. मञ्जर (वि.) १८३. मणिकुल्या (अ.) ४६४ (लक्षण); (वि.) भावानुकरण (वि.) ९६. मण्डल (वि.) ४४७. भाविक (अ.) ४०२, ४०३. मति (अ.) ११७, १२०, १२६, १२७, भाविकत्व (अ.) ४३१. १२८, १३० (लक्षण). भाषा (अ.) ३२४. मद (अ.) ११०, १२६, १२७, १३१ भाषाद्रव्यपरिणति (अ.) १. (लक्षण),३२४, ४३१; (वि.) ३३५. भाषान्तरभंग (अ.) ३२६. मधु (वि.) १९३. भाषाश्लेष (अ.) ३२० (लक्षण); ३३१. | मधुर (वि.) २८२. भिक्षु (वि.) २२८. मध्य (सम) (वि.) २७९. भिन्नषड्ज (अ.) २६९. मध्यदेश (वि.) १८३. भिन्नसहचरत्व (अ.) २६१, २६७. मध्यदेश्य (वि.) १८६. मिन्नाश्रयत्व (अ.) १६२. मध्यम-काव्य (अ) १५२ (लक्षण). भीमसेन (अ.) २९२; (वि.) ४५०, मध्यममास (अ.) ४०६. (वि.) २९३. ४५१. मध्यमा (नायिका) (अ.) ४०६. भीष्म (अ.) ३६७. मध्यमा-प्रकृति (अ.) १७६. भूमिपिशाच (अ.) २२७. मध्या (नायिका) (अ.) ४१३, ४१४, भृगुकच्छ (वि.) १८३. भेदव्यत्यय (अ) ३६८. मनोभू (अ.) १०८. भैमरथी (वि.) १८३. मनोरथ (अ) ११९; (वि.) ११९. भोग (वि.) ९६, ९७, ९९. मन्त्र (अ.) ४५८; (वि.) ४५८. भोगिनी (वि.) ४४४. मन्त्रिन (वि.) ४४४. भोगीकरण (वि.) ९७. मन्थल्लिका (अ.) ४६४ (लक्षण); (वि.) भोजन (वि.) ४५७. भ्रान्ति (अ.) ३९१ (लक्षण), ३९९; मन्दकुलस्त्री (अ) ४२६. __ (वि.) ३२९. मन्दाक्रान्ता (वि.) २८७, २८८. भृकुटीकरण (अ.) ११६. मन्द्र (वि.) ३३५. भ्रान्ति (अ.) ३९१ (लक्षण), ३९९; | मन्द्रतर (वि.) ३३५. (वि.) ३३९. मन्मन (वि.) ३३५. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001066
Book TitleKavyanushasana Part 1
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRasiklal C Parikh
PublisherMahavir Jain Vidyalay
Publication Year1938
Total Pages631
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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