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________________ ५४७ पूर्वरङ्ग (वि.) १००. प्रतिशीर्षकादि (वि.) ९३. पृथूदक (वि.) १८३. प्रतीची (वि.) १८३, १८४. पृथ्वी (वि.) १८०. प्रतीति (अ.) २२५; (वि.) ९५, ९८, पैशाची (भाषा) (अ.) ३३१; (वि.) ९९, १००, २९३. प्रतीत्युपायवैकल्य (वि.) ९९. पौरस्त्य वायु (वि.) १८८. प्रतीप (अ.) ३७२. पौर्वापर्यपरामर्श (वि.) १७७. प्रतीयमान (वि.) ९०. प्रकरण (रूपक) (अ.) ६४, ४३२, ४३४, | प्रतीहारी (वि) ४४४. ४३५ (लक्षण), ४३६. प्रत्यक्ष (अलंकार) (वि.) ४०५. प्रकरणबल (अ.) ३३६. प्रत्यनीक (अ.) ४०५; (वि.) ४०५. प्रकाश (वि.) १०१. प्रत्यय (अ.) ३२४. प्रकाशानन्द (वि.) ९६. प्रत्यलंकार (हृद्यग्रहण) (अ.) ३३९. प्रकृति (अ.) १७३, ३२४, ३३१. प्रत्यागत (अ.) ३१३; (वि.) ३९०. प्रकृतिव्यत्यय (अ.) १७३, १७८. प्रत्याशा (वि.) ४५५. प्रक्रमभेद (वि.) २८०. प्रधान (वि.) १०१. प्रख्यातोदात्त (नायक) (वि.) ४३२. प्रबन्ध (अ.) ८७, १०९, १६३, ४६३; प्रगल्भा (अ.) ४१४. (वि.) १०५, २८०, ४५६, ४५७. प्रज्ञा (अ.) ६. प्रबन्धात्मक काव्य (अ.) ४३२. प्रणय (अ.) ११२. प्रबन्धाश्रित (मुक्तक) (वि.) २९४. । प्रणयकलह (वि.) १७७. प्रबोध (अ.) ११०, १२६, १२७, प्रणयमान (विप्रलम्भ) (अ.) ११२. १३५ (लक्षण). प्रताप (अ.) ११७; (वि.) ११७. प्रभाव (अ.) ११७; (वि.) ११७. प्रतिनायक (अ.) ४१३ (लक्षण). प्रमाण (वि.) २४५, २८०. प्रतिनायिका (अ.) ४२१ (लक्षण). प्रमिति (वि.) १००. प्रतिपत्ति (वि.) ९७. प्रयाग (वि.) १८३. प्रतिपत्ति-अयोग्यता (वि.) ९९. प्रयाण (वि.) ४५८. प्रतिभा (अ.) ३, ५, ६, १४. प्रयोग (अ.) ४३.; (वि.) ३३६. प्रतिभान (वि.) ९९. प्रयोजन (अ) ३. प्रतिभानवत्-कवि [ =कालिदास] (वि.) प्रयोजनोपन्यास (वि) ४५६. १७७. प्ररोचना (वि.) ४४५. प्रतिमुख (अ.) ४५१ (लक्षण). प्रलय (अ.) ११६, १४४, १४६; (वि.) प्रतिवस्तूपमा (वि.) ३५४. १४६, १५४. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001066
Book TitleKavyanushasana Part 1
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRasiklal C Parikh
PublisherMahavir Jain Vidyalay
Publication Year1938
Total Pages631
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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