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________________ किसलयमिव (अ.) १४१, १३६. कृष्णेनाम्ब (अ.) ११६, १२०. . . . . [उ. रा. च. अं. ३. लो. ५.] | [सुभाषितावलि ४० ] कीर्तिप्रतापौ भवतः (.अ) ३८१, २६४. | केदार एव (वि.) २६६, १८९. .. कुन्दे मन्दस्तमाले (वि.) ३२९, १९८. | केनेमो दुर्विदग्धेन (अ.) ४७५, ३२२. कुमारीभाक्समुचितकृत (वि.) ५९४, ४५२. | केलिकन्दलितस्य (अ.) ९३, १०४. .. [.. अं. २. प. ९९] । कैलासगोर (वि.) १००, २८. 'कुमुदकमल (अ.) १५५, ३५८. [२, वं. स. २ 'लो. ३५] कुमुदवनमपत्रि (वि.) ५७, १९... कोदण्ड (अ.) ४४. ६४. [शि. व. स. ११. लो. ६४] कोपात्कोमललोल (अ.) ९, ४०. कुरङ्गाक्षीणां (अ.) २५०, २१४. । ७०७, ४१७. [ अ. श. ९. ] कुरशीवाशानि (अ.) ७२२, ४२४. कोपान्मानिनि (वि.) ४९, १७. कुरु लालसभूलेहे (अ.) ४८१, ३२५. . . कोऽयं द्वारि हरिः (अ.) ४९५, ३३२. कुवा हरस्यापि (वि.) ३३७, २०४. [सु. लो. १०४ ] [कु. स. स. ३. 'लो. १०] कोराविऊण (अ.) ३७९, २६४. कुलबालियाए (अ.) ६९२, ४१३. कोऽलंकारः सताम् (अ.) ६४९, ३९५. कुलममलिन (वि.) ५६३, ३९३. कौटिल्य कचनिचये (अ.) ६५२, ३९५. कुललालिलावलोले (वि.) ५२८, ३२५. | [ रुद्रट. का. लं. अ. ७. 'लो. ८१ ] [रु. का. लैं. अ. ४ लो. १२] क्रीडन्ति प्रसरन्ति ४९२, ३३२.। कुविन्दस्त्वं तावत् (अ.) ३३२, २३९. - [रुद्रट. का. लं. अ. ४. सू. २३ ] कुसुमसौरभ (अ.) ६५९, ३९८. क्रोधं प्रभो संहर (अ.) २००, १७७ [शि. व. स. ६. *लो. १४. ] / [कु. सं. स. ३. लो. ७२. ] कुसुमायुधपत्लि (वि.) ६२१, ४६१. क्रौञ्चाविरुवामदृशद् ( अ.) ५८९, ३७४. . [कु. सं. स. ४ *लो. ४० ] क्रौर्य कृतान्ताधिकम् (वि.) ३८१, २५३. कृच्छेणोल्युगं (वि.) १७८, १५१. . क्वचिदग्रेप्रसरता (अ.) ३२५, २३८. [र. अं. २. "लो. ३° ] | क्व सर्यप्रभवो (अ.) ५४७, २५४. कृतककुपितेर् (वि.) ३६९, २५१. [र. वं. स. १. 'लो. २.] कृतवानसि (अ.) २६७, २२० 1 क्वाकार्य शशलक्ष्मणः (अ.) १२१, १२८. [कु. सं. स. ४. 'लो. ७.] | . कृतो दूगदेव (अ.) ७३८, ४३०. [सुभाषितावली १३४३. कालिदासस्य ] [अ. श. 'लो. १४ ] | क्षणं कामज्वरोच्छित्त्यै (अ.) ५००, ३४१. कृपाणपाणिश्च (वि.) ५६६, ३९३. क्षणं स्थिताः पक्ष्मसु (वि.) ४०८, २७७. कृष्णार्जुनानुरक्त (अ.) ६६४. ३९९. । .. [कु. सं. स. ५. 'लो, २४ ] - [का. द. परि. २. 'लो. ३३९] | क्षितिं खनन्तो (वि.) २६२, १८९.... Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001066
Book TitleKavyanushasana Part 1
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRasiklal C Parikh
PublisherMahavir Jain Vidyalay
Publication Year1938
Total Pages631
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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