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भूमिका (अग्निवेश), मोग्गल्ल (मौद्गल्य), अट्ठिसेण, (आर्टिषेण ), पूरिमंस, गद्दभ, वराह, डोहल ( काहल ), कंडूसी, भागवाती (भागवित्ति), काकुरुडी, कण्ण (कर्ण), मझंदीण (माध्यन्दिन), वरक, मूलगोत्र, संख्यागोत्र, कढ (कठ), कलव (कलाप) वालंब (व्यालम्ब), सेतस्सतर (श्वेताश्वतर), तेत्तिरोक (तैत्तिरीय), मज्झरस, बज्मस (संभवतः बाध्व), छन्दोग (छान्दोग्य), मुञ्जायण (मौञ्जायन), कत्थलायण, गहिक, णेरित, बंभच्च, काप्पायण, कप्प, अप्पसत्थभ, सालंकायण, यणाण, आमोसल, साकिज, उपवति, डोभ, थंभायण, जीवंतायण, दढक, धणजाय, संखेण, लोहिय, अंतभाग, पियोभाग, संडिल्ल, पव्वयव, आपुरायण, वावदारी, वग्धपद ( व्याघ्रपाद ), पिल (पैल ), देवहच, वारिणील, सुघर । इस सूची में स्पष्ट ही प्राचीन ऋषि गोत्रों के साथ साथ बहुत से नये नाम भी हैं जो पाणिनीय परिभाषाके अनुसार गोत्रावयव या लौकिक गोत्र कहे जायेंगे। इस तरह के बांक या अल्ल समाज में हमेशा बनते रहते हैं और उस समय के जो मुख्य अवटंक रहे होंगे उनमें से कुछ के नाम यहाँ आ गए हैं। इसके अतिरिक्त कुछ विद्वानों और शास्त्रों के नाम भी आये हैं जैसे वैयाकरण, मीमांसक, छन्दोग, पण्णायिक (प्रज्ञावादी दार्शनिक), ज्योतिष, इतिहास, श्रुतवेद (ऋग्वेद), सामवेद, यजुर्वेद, एकवेद, द्विवेद, त्रिवेद, सव्ववेद ( संभवतः चतुर्वेदी), छलंगवी (षडंगवित ), सेणिक णिरागति, वेदपुष्ट, श्रोत्रिय, अज्झायी ( स्वाध्यायी), आचार्य, जावक, णगत्ति, वामपार (पृ० १५०)।
छब्बीसवां अध्याय नामों के विषय में है। नाम स्वरादि या व्यंजनादि, अथवा ऊष्मान्त, व्यंजनान्त या स्वरान्त होते थे। कुछ नाम समाक्षर और कुछ विषमाक्षर, कुछ जीवसंसृष्ट और कुछ अजीवसंसष्ट थे। स्त्रीनाम, पुंनाम, नपुंसक यह विभाग भी नामों का है। अतीत वर्तमान और अनागत काल के नाम यह भी एक वर्गीकरण है। एक भाषा, दो भाषा या बहुत भाषाओं के शब्दों को मिला कर बने हुए नाम भी हो सकते हैं। और भी नामों के अनेक भेद संभव हैं। जैसे नक्षत्र, ग्रह, तारे, चन्द्र, सूर्य, वीथि या मंडल, दिशा, गगन, उल्का, परिवेश, कूप, उदपान, नदी, सागर, पुष्करिणी, नाग, वरुण, समुद्र, पट्टन, वारिचर, वृक्ष, अन्नपान, पुष्प, फल, देवता, नगर, धातु, सुर, असुर, मनुष्य, चतुष्पद, पक्षो, कीट, कृमि, इत्यादि प्रथिवी पर जितने भी पदार्थ हैं उन सबके नामों के अनुसार मनुष्यों के नाम पाये जाते हैं। वस्त्र, भूषण, यान, आसन, शयन, पान, भोजन, आवरण, प्रहरण, इनके अनुसार भी नाम रखे जाते हैं। नरकवासी लोक, तिर्यक योनि में उत्पन्न, मनुष्य, देव, असुर, पिशाच, यक्ष, राक्षस, किन्नर, किंपुरुष, गन्धर्व, नाग, सुपर्ण इत्यादि जो देव योनियाँ हैं उनके अनुसार भी मनुष्यों के नाम रखे जाते हैं। एक, तीन, पाँच, सात, नौ, ग्यारह अक्षरों के नाम होते हैं, जो विषमाक्षर कहलाते हैं। अथवा दो, चार, आठ, दस, बारह अक्षरों के नाम समाक्षर कहलाते हैं। संकर्षण, मदन, शिव, वैष्णव, वरुण, यम, चन्द्र, आदित्य, अग्नि, मरुत्संज्ञक देवों के अनुसार भी मनुष्य नाम होते हैं।
मनुष्य नाम पाँच प्रकार के कहे गये हैं-(१) गोत्रनाम, इनके अन्तर्गत गृहपति और द्विजाति गोत्र दो कोटियाँ थीं जिनका उल्लेख ऊपर हो चुका है। (२) अपनाम या अधनाम-जैसे उज्झितक, छडितक। इनके अन्तर्गत वे नाम हैं जो हीन या अप्रशस्त अर्थ के सूचक होते हैं। प्रायः जिनके बच्चे जीवित नहीं रहते वे माता-पिता अपने बच्चों के ऐसे नाम रखते हैं। (३) कर्मनाम । (४) शरीर नाम जो प्रशस्त और अप्रशस्त होते हैं, अर्थात् शरीर के अच्छे बुरे लक्षणों के अनुसार रखे जाते हैं; जैसे सण्ड, विकड, खरड, खल्वाट आदि । दोषयुक्त नामों की सूची में खंडसीस, काण, पिल्लक, कुब्ज, वामणक, खंज आदि नाम भी हैं। यह स्पष्ट रूप से कहा गया है कि प्राकृत भाषा में भी नाम रखे जाते हैं। उसमें प्रशस्त नाम वे हैं जो वर्ण गुण या शरीर गुण के अनुसार होंजैसे अवदातक और उसे ही प्राकृत भाषा में सेड या सेडिल, ऐसे ही श्याम को प्राकृत भाषा में सामल या सामक और कृष्ण को कालक या कालिक कहा जायगा। ऐसे ही शरीर गुणों के अनुसार सुमुख, सुंदसण, सुरूप, सुजान, सुगत आदि नाम होते हैं। (५) करण नाम वे हैं जो अक्षर संस्कार के विचार से रखे जाते हैं। इनमें
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