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________________ तृतीयं परिशिष्टम् ३३३ पत्रम् ११७ १८ धातुरूपम् वक्खामि वक्खायिस्सामि वजिहिते वहति वहिहिति १४८ १५५ वडीयत वत्तते वस्थित ६३-१०७ १११ १२२ १६८-१७१ १९५ ८०-१०० पढ़े 9 mo पत्रम् धातुरूपम् १०८ विक्खरह १९२ विक्खिण्ण ८४ विक्खित ६ विक्खित्त ८४ विक्खिन्न ९ विक्खिरे २३६ विक्खिवमाण ८३ विक्खिवे ११७ विखद्धित ६६ विखिवंत ७९ विगलिय विगिलते विघोलते विचलित विच्छिण्ण विच्छित्त विच्छिन्न विच्छुद्ध विच्छोभण विजाणेजो विजाणेति विजा विजिस्सति २५४ विजिहिति १२९ विजिहिते विजेहिति १०८-१३० विजेहिते २०० १९५ Don०७09.0mm १४५ पत्रम् धातुरूपम् ४५ वित्थिण्ण १०८ विद् १९९ विद्ध ३८ विधत्त ८०-१६८ विधावति ४५ विधीयति १३६ विधीयते १०८ विपडत १४८ विपाडित विप्पकडित विप्पकिण्ण विपघोलति विप्पजोयित विप्पमुक्क १२२ विप्परिचेटते १६८ विप्परिवत्तते विप्पलोहित १६८ विप्पसारित विभाएजो विभावेतूण विमाणित १८-२१ विमिसंत ९० वियंभंत ८१-९८ वियाकरे वियागरंति वियागरिज १६८-१७१ वियागरे २५० वियागरेज वियाजिज्जमाण १५५ वियाण वियाणिज्जो वियाणिया बियाणीया वियाणेजो १०८-१६८ वियाणेय विरुभति विरोहंत १२७ विलंधित विलित विलिपति ११७ विलिंपत वधिस्सति वनयिस्सामि वष्फति वयंत सं० पतत् ववस्संति वंत वंदहे वंदामि वंदिऊण वंदित वाइय वादित वापण्ण वायए वायंत वायेज्जो वायेहिति वाविद्ध वासति वासित वाहरति वाहित विभाकरे विभागरे विकट्ठति विकड्डित विकंदित विकंपण विकंपिय विकुगत विकुणित विकूणिम विकूणित १२२ ०००० WS ० 6.0G ८४ २५७ विज्झवित ३६-६० १६८ १९८ - १६९ २१ १४-८४ २२ १९८ २४६ विज्झीयति विण? १५२ विणत विणमंत १२-६७ विणस्सिस्सति ८०-१०८ विणासण १०८ विणासिज्जमाण १५५ विणासित १३० विणित १. विणिकोलंत ४२ विणेच्छिति १५५ विणातूण १८४ विण्ड १३० वितत ४४ वित्यत १०० १९७ विविय Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001065
Book TitleAngavijja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyavijay, Vasudev S Agarwal, Dalsukh Malvania
PublisherPrakrit Granth Parishad
Publication Year1957
Total Pages487
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Jyotish, & agam_anykaalin
File Size15 MB
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