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________________ विषयानुक्रम बारह ( ग्यारह ) महंतक, अट्ठाइस शुचि, दश क्लिष्ट, पिचत्तर वर, २३१ पिचत्तर नायक, पिचत्तर अनायक, पचास ( अट्ठावन ) नीच, पिचत्तर निरथक, २३४ पचास अन्यजन, सोलह अम्बर ( अन्तर ), ग्यारह शूर, तीन भीरु अंगोंके नाम १७७५-१८१४ १८१५-६८ (२३९-७०) पचास एक्ककादि अङ्गोंके नाम १२६-२७ दो सौ सत्तर द्वारोंका समुचित फलादेश और नववें अध्याय की समाप्ति १२८-२९ १० दसवाँ आगमन अध्याय १३०-१३५ आगमन विषयक फलादेश पृष्ट १३० पंक्ति ५-७, पं० १७-१८, पृष्ठ १३२ पं० १४, पृष्ठ १३३ पं० ९ में प्राकृत धातुओं का संग्रह है ११ ग्यारहवाँ पृष्ट अध्याय १३५-१३८ प्रश्नपृच्छाके प्रकार और तदनुसार फलादेश इस अध्यायमें अनेकानेक प्रकारके गृह, शालायें और वैभागिक एवं प्रादेशिक स्थानोंका संग्रह है १२ बारहवाँ योनि अध्याय १३८-१४० अंगविद्याद्वारा अनेक प्रकारको मानसिक, व्यावहारिक, जाति विषयक एवं औपाधिक जीवन प्रवृत्तियों के आधारस्वरूप योनियोंका फलादेश १४०-१४४ १४४-१४५ १४५ १४५ १३ तेरहवाँ योनिलक्षण व्याकरणाध्याय १४ चौदहवाँ लोमद्वाराध्याय १५ पनरहवाँ समागमद्वाराध्याय १६ सोलहवाँ प्रजाद्वाराध्याय १७ सतरहवाँ आरोग्यद्वाराध्याय १८ अठारहवाँ जोवितद्वाराध्याय १९ उन्नीसवाँ कर्मद्वाराध्याय २० बीसवाँ वृष्टिद्वाराध्याय . १४५ १४५-१४६ १४६ १४६ Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001065
Book TitleAngavijja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyavijay, Vasudev S Agarwal, Dalsukh Malvania
PublisherPrakrit Granth Parishad
Publication Year1957
Total Pages487
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Jyotish, & agam_anykaalin
File Size15 MB
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