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________________ ॥ जयन्तु वीतरागाः ॥ अंगविज्जापइएणय-विषयानुक्रम विषय १-३६ १ पहला अंगोत्पत्तो अध्याय अंगविद्याकी उत्पत्ति अंगविधाका स्वरूप २१-३६ अंगविद्या प्रकीर्णक ग्रन्थ के अध्यायों के नाम २-३ २ दूसरा निजसंस्तव अध्याय १-५४ ३ तीसरा शिष्योपख्यापन अध्याय ३-५ अंगविद्याशास्त्रको पढ़नेवाले शिष्योंकी योग्यायोग्यता, उनके गुण-दोष और अंगशास्त्र पठनके योग्य और अयोग्य स्थान-जगहका वर्णन ४ चौथा अंगस्तव अध्याय अंगविद्याका माहात्म्य ५ पाँचवाँ मणिस्तव अध्याय अंगविद्या के पारंगत मणिस्वरूप महापुरुषों की स्तुति ६ छट्ठा आधारण अध्याय अंगविद्याशास्त्रज्ञ गंभीर होकर प्रश्नकरनेवालेके प्रश्नका श्रवण पवं अवधारण करे-इस विधिका वर्णन । ७ सातवाँ व्याकरणोपदेश अध्याय आविद्याशास्त्रज्ञ गंभीर होकर फलादेश करे- इस विधिका कथन । ८ आठवाँ भूमीकर्म अध्याय ८.०५६ (१) गद्यबंध संग्रहणीपटले अंगविद्याको भूमीको साध्य करमेको विद्यायें एवं भूमीकर्म अध्यायके पटलोंमें वर्णनीय विषयों का निर्देश । Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001065
Book TitleAngavijja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyavijay, Vasudev S Agarwal, Dalsukh Malvania
PublisherPrakrit Granth Parishad
Publication Year1957
Total Pages487
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Jyotish, & agam_anykaalin
File Size15 MB
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