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________________ . पण्णवणासुत्ते पढमे पण्णवणापए [सु० १३५ - . १३५. से किं तं छेदोवठ्ठावणियचरित्तारिया ? छेदोवट्ठावणियचरित्तारिया दुविहा पण्णता। तं जहा-साइयारछेदोवट्ठावणियचरित्तारिया य णिरइयारछेओवट्ठावणियचरित्तारिया य । से तं छेदोवट्ठावणियचरित्तारिया। १३६. से किं तं परिहारविसुद्धियचरित्तारिया ? परिहारविसुद्धियचरित्तारिया दुविहा पण्णत्ता। तं जहा-निविसमाणपरिहारविसुद्धियचरित्तारिया य निविट्ठकाइयपरिहारविसुद्धियचरित्तारिया य । से तं परिहारविसुद्धियचरित्तारिया । १३७. से किं तं सुहुमसंपरायचरित्तारिया ? सुहुमसंपरायचरित्तारिया दुविहा पण्णत्ता। तं जहा-संकिलिस्समाणसुहुमसंपरायचरित्तारिया य विसुज्झमाणसुहुमसंपरायचरित्तारिया य। से तं सुहुमसंपरायचरित्तारिया। १३८. से किं तं अहक्खायचरित्तारिया १ अहक्खायचरित्तारिया दुविहा पण्णत्ता। तं जहा-छउमत्थअहक्खायचरित्तारिया य केवलिअहक्खायचरित्तारिया य। से तं अहक्खायचरित्तारिया। से तं चरित्तारिया । से तं अणिडिपत्तारिया। से तं आरिया। से तं कम्मभूमगा। से तं गन्भवतिया। से तं मणुस्सा। १५ [सुत्ताई १३९-१४७. देवजीवपण्णवणा] १३९. से किं तं देवा १ देवा चउव्विहा पण्णत्ता । तं जहा-भवणवासी १ वाणमंतरा २ जोइसिया ३ वेमाणिया ४ । १४०. [१] से किं तं भवणवासी ? भवणवासी दसविहा पन्नत्ता। तं जहा-असुरकुमारा १ नागकुमारा २ सुवण्णकुमारा ३ विज्जुकुमारा ४ २० अग्गिकुमारा ५ दीवकुमारा ६ उदहिकुमारा ७ दिसाकुमारा ८ वाउकुमारा ९ थणियकुमारा १०। [२] ते समासतो दुविहा पण्णत्ता । तं जहा-पज्जत्तगा य अपजत्तगा य । से तं भवणवासी। १४१. [१] से किं तं वाणमंतरा ? वाणमंतरा अट्ठविहा पण्णत्ता। २५ तं जहा-किन्नरा १ किंपुरिसा २ महोरगा ३ गंधव्वा ४ जक्खा ५ रक्खसा ६ भूया ७ पिसाया ८॥ [२] ते समासतो दुविहा पण्णत्ता । तं जहा-पज्जत्तगा य अपज्जत्तगा य । से तं वाणमंतरा। Jain Education International For Private & Personal Use Only ww www.jainelibrary.org
SR No.001063
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorPunyavijay, Dalsukh Malvania, Amrutlal Bhojak
PublisherMahavir Jain Vidyalay
Publication Year1969
Total Pages506
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size9 MB
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