SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 61
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पण्णवण्णासुत्ते पढमे पण्णवणापए [सु. १२नीलवण्णपरिणता वि लोहियवण्णपरिणता वि हालिद्दवण्णपरिणता वि सुक्किलवण्णपरिणता वि, गंधओ सुन्भिगंधपरिणता वि दुब्भिगंधपरिणया वि, फासओ कक्खडफासपरिणता वि मउयफासपरिणता वि गरुयफासपरिणता वि लहुयफासपरिणता वि सीतफासपरिणता वि उसिणफासपरिणता वि निद्धफासपरिणता वि ५ लुक्खफासपरिणता वि, संठाणओ परिमंडलसंठाणपरिणता वि वट्टसंठाणपरिणता वि तंससंठाणपरिणता वि चउरंससंठाणपरिणता वि आययसंठाणपरिणता वि २० । [४] जे रसओ अंबिलरसपरिणता ते वण्णओ कालवण्णपरिणता वि नीलवण्णपरिणता वि लोहियवण्णपरिणता वि हालिद्दवण्णपरिणता वि सुक्किलवण्णपरिणता वि, गंधओ सुंब्भिगंधपरिणता वि दुब्भिगंधपरिणता वि, फासओ कक्खडफासपरिणता वि मउयफासपरिणता वि गरुयफासपरिणता वि लहुयफासपरिणता वि सीतफासपरिणता वि उसिणफासपरिणता वि निद्धफासपरिणता वि लुक्खफासपरिणता वि, संठाणओ परिमंडलसंठाणपरिणता वि वट्टसंठाणपरिणता वि तंससंठाणपरिणता वि चउरंससंठाणपरिणता वि आययसंठाणपरिणता वि २० । [५] जे रसओ महररसपरिणता ते वण्णओ कालवण्णपरिणता वि १५ नीलवण्णपरिणता वि लोहियवण्णपरिणता वि हालिवण्णपरिणता वि सुक्किलवण्ण परिणता वि, गंधतो सुब्भिगंधपरिणता वि दुन्भिगंधपरिणता वि, फासतो कक्खडफासपरिणता वि मउयफासपरिणता वि गरुयफासपरिणता वि लहुयफासपरिणता वि सीयफासपरिणता वि उसिणफासपरिणता वि निद्धफासपरिणता वि लुक्खफासपरिणता वि, संठाणतो परिमंडलसंठाणपरिणता वि वट्टसंठाणपरिणता २० वि तंससंठाणपरिणता वि चउरंससंठाणपरिणता वि आययसंठाणपरिणता वि २०११००।३। १२. [१] जे फासतो कक्खडफासपरिणता ते वण्णओ कालवण्णपरिणता वि नीलवण्णपरिणता वि लोहियवण्णपरिणता वि हालिद्दवण्णपरिणता वि सुक्किलवण्णपरिणता वि, गंधओ सुब्भिगंधपरिणता वि दुब्भिगंधपरिणता वि, रसओ २५ तित्तरसपरिणता वि कडुयरसपरिणता वि कसायरसपरिणता वि अंबिलरसपरिणता वि महुररसपरिणता वि, फासतो गरुयफासपरिणता वि लहुयफासपरिणता वि सीतफासपरिणता वि उसिणफासपरिणता वि निद्धफासपरिणता वि लुक्खफास १. सुरभिगंध ध० ॥ २. दुरभिगंध ध०॥ ३. सुरभिगंध ध० ॥ ४. दुरभिगंध ध० ॥ ५. सुरभिगंध ध०॥ ६. दुरभिगंध ध०॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001063
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorPunyavijay, Dalsukh Malvania, Amrutlal Bhojak
PublisherMahavir Jain Vidyalay
Publication Year1969
Total Pages506
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy