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________________ १५१९] वेउव्वियसरीरे विहिदारं । ३३७ [३] जदि संखेजवासाउयगब्भवक्कंतियतिरिक्खजोणियपंचेंदियवेउव्वियसरीरे किं पञ्जत्तगसंखेजवासाउयगब्भवक्कंतियतिरिक्खजोणियपंचेंदियवेउब्वियसरीरे अपज्जतगसंखेजवासाउयगब्भवतियतिरिक्खजोणियपंचेंदियवेउव्वियसरीरे ? गोयमा ! पजत्तगसंखेजवासाउयगब्भवतियतिरिक्खजोणियपंचेंदियवेउब्वियसरीरे, णो अपज्जत्तगसंखेजवासाउयगन्भवतियतिरिक्खजोणियपंचेंदियवेउब्बियसरीरे । ५ [४] जदि संखेजवासाउयगब्भवक्कंतियतिरिक्खजोणियपंचेंदियवेउव्वियसरीरे किं जलयरसंखेजवासाउयगन्भवतियतिरिक्खजोणियपंचेंदियवेउव्वियसरीरे थलयरसंखेजवासाउयगब्भवतियतिरिक्खजोणियपंचेंदियवेउव्वियसरीरे खहयरसंखेजवासाउयगब्भवक्कंतियतिरिक्खजोणियपंचेंदियवेउव्वियसरीरे १ गोयमा ! जलयरसंखेजवासाउयगम्भवकंतियतिरिक्खजोणियपंचेंदियवेउब्वियसरीरे वि थलयर- १० संखेजवासाउयगब्भवक्कंतियतिरिक्खजोणियपंचेंदियवेउव्वियसरीरे वि खहयरसंखेजवासाउयगब्भवतियतिरिक्खजोणियपंचेंदियवेउब्वियसरीरे वि। [५] जदि जलयरसंखेजवासाउयगब्भवतियतिरिक्खजोणियपंचेंदियवेउव्वियसरीरे किं पजत्तगजलयरसंखेजवासाउयगब्भवक्कंतियतिरिक्खजोणियपंचेंदियवेउव्वियसरीरे अपजत्तगजलयरसंखेज्जवासाउयगब्भवतियतिरिक्खजोणियपंचेंदि- १५ यवेउव्वियसरीरे ? गोयमा ! पजत्तगजलयरसंखेजवासाउयगब्भवक्कंतियतिरिक्खजोणियपंचेंदियवेउव्वियसरीरे, णो अपजत्तगजलयरसंखेजवासाउयगब्भवतियतिरिक्खजोणियपंचेंदियवेउब्वियसरीरे । [६] जदि थलयरसंखेज्जवासाउयगब्भवक्कंतियतिरिक्खजोणियपंचेंदिय जाव सरीरे किं चउप्पय जाव सरीरे परिसप्प जाव सरीरे १ गोयमा ! चउप्पय जाव २० सरीरे वि परिसप्प जाव सरीरे वि। [७] एवं संव्वेसिं णेयं जाव खहयराणं पज्जत्ताणं, णो अपजत्ताणं । १५१९. [१] जदि मणूसपंचेंदियवेउब्वियसरीरे किं सम्मुच्छिममणूसपंचेंदियवेउवियसरीरे गब्भवतियमणूसपंचेंदियवेउव्वियसरीरे ? गोयमा ! णो सम्मुच्छिममणूसपंचेंदियवेउव्वियसरीरे, गब्भवतियमणूसपंचेंदियवेउव्वियसरीरे । २५ [२] जदि गब्भवक्कंतियमणूसपंचेंदियवेउव्वियसरीरे किं कम्मभूमगगब्भवक्कंतियमणूसपंचेंदियवेउव्वियसरीरे अकम्मभूमगगब्भवतियमणूसपंचेंदियवेउव्वियसरीरे अंतरदीवयगब्भवक्कंतियमणसपंचेंदियवेउव्वियसरीरे ? गोयमा ! कम्मभू १. सव्वेसिं णेयव्वं जाव पु२ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001063
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorPunyavijay, Dalsukh Malvania, Amrutlal Bhojak
PublisherMahavir Jain Vidyalay
Publication Year1969
Total Pages506
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size9 MB
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