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________________ पण्णवणासुत्ते एगवीसइमे ओगाहणसंठाणपए [सु. १५१६ - [२] जदि वाउक्काइयएगिदियवेउव्वियसरीरे किं सुहुमवाउक्काइयएगिंदियवेउव्वियसरीरे बादरवाउक्काइयएगिदियवेउब्वियसरीरे ? गोयमा ! णो सुहुमवाउक्काइयएगिदियवेउब्वियसरीरे, बायरवाउक्काइयएगिदियवेउव्वियसरीरे । [३] जदि बादरवाउक्काइयएगिंदियवेउब्वियसरीरे किं पज्जत्तबायरवाउक्काइयएगिंदियवेउव्वियसरीरे अपजत्तबायरवाउक्काइयएगिदियवेउव्वियसरीरे १ गोयमा ! पजत्तबादरवाउक्काइयएगिदियवेउब्वियसरीरे, णो अपज्जत्तबादरवाउक्काइयएगिदियवेउब्वियसरीरे। १५१६. जदि पंचेंदियवेउब्वियसरीरे किं णेरइयपंचेंदियवेउब्वियसरीरे जाव किं देवपंचेंदियवेउव्वियसरीरे ? गोयमा ! जेरइयपंचेंदियवेउव्वियसरीरे वि १० जाव देवपंचेंदियवेउब्वियसरीरे वि। १५१७. [१] जदि णेरइयपंचेंदियवेउव्वियसरीरे किं रयणप्पभापुढविणेरइयपंचेदियवेउब्वियसरीरे जाव किं अहेसत्तमापुढविणेरइयपंचेंदियवेउब्वियसरीरे ? गोयमा ! रयणप्पभापुढविणेरइयपंचेंदियवेउब्वियसरीरे वि जाव अहेसत्तमापुढविणेरइयपंचेंदियवेउव्वियसरीरे वि । [२] जदि रयणप्पभापुढविणेरइयपंचेंदियवेउव्वियसरीरे किं पजत्तगरयणप्पभापुढविणेरड्यपंचेंदियवेउबियसरीरे अपजत्तगरयणप्पभापुढविणेरइयपंचेंदियवेउब्वियसरीरे ? गोयमा ! पजत्तगरयणप्पभापुढविणेरइयपंचेंदियवेउब्वियसरीरे वि अपज्जत्तगरयणप्पभापुढविणेरइयपंचेंदियवेउव्वियसरीरे वि। [३] एवं जाव अहेसत्तमाए दुगतो भेदो णेयव्वो। १५१८. [१] जदि तिरिक्खजोणियपंचेंदियवेउब्वियसरीरे किं सम्मुच्छिमतिरिक्खजोणियपंचेंदियवेउब्वियसरीरे गब्भवतियतिरिक्खजोणियपंचेंदियवेउव्वियसरीरे ? गोयमा ! णो सम्मुच्छिमतिरिक्खजोणियपंचेंदियवेउब्वियसरीरे, गब्भवक्कंतियतिरिक्खजोणियपंचेंदियवेउब्वियसरीरे । [२] जदि गब्भवकंतियतिरिक्खजोणियपंचेंदियवेउव्वियसरीरे किं संखे२५ जवासाउयगब्भवतियतिरिक्खजोणियपंचेंदियवेउव्वियसरीरे असंखेजवासाउयग ब्भवकंतियतिरिक्खजोणियपंचेंदियवेउब्वियसरीरे ? गोयमा ! संखेन्जवासाउयगम्भवक्कंतियतिरिक्खजोणियपंचेंदियवेउब्वियसरीरे, णो असंखेजवासाउयगम्भवकतियतिरिक्खजोणियपंचेंदियवेउव्वियसरीरे । 1. दुगतो भेदो भाणियब्वो म० प्र० पु२ मु० ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001063
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorPunyavijay, Dalsukh Malvania, Amrutlal Bhojak
PublisherMahavir Jain Vidyalay
Publication Year1969
Total Pages506
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size9 MB
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