SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 406
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २४९] उवकमाणुओगदारे छनामदारं। ___२४७. से किं तं खओवसमनिप्फन्ने ? २ अणेगविहे पण्णत्ते । तं जहाखओवसमिया आभिणिबोहियणाणलद्धी जाव खओवसमिया मणपजवणाणलद्धी, खओवसमियों मतिअण्णाणलद्धी खओवसमिया सुयअण्णाणलद्धी खओवसमिया विभंगणाणलद्धी, खओवसमिया चक्खुदंसणलद्धी एवमचक्खुदंसणलद्धी ओहिदंसणलद्धी, एवं सम्मइंसणलद्धी मिच्छादसणलद्धी सम्मामिच्छादसणलद्धी, खओवसमिया सामाइयचरित्तद्धी एवं छेदोवट्ठावणलद्धी परिहारविसुद्धियलद्धी सुहुमसंपराइयलद्धी एवं चरिताचरित्तलद्धी, खओवसमिया दाणलद्धी एवं लाभ० भोग० उवभोग० खयोवसमिया वीरियलद्धी एवं पंडियवीरियलद्धी बालवीरियलद्धी बालपंडियवीरियलद्धी, खओवसमिया सोइंदियलद्धी जाव खओवसमिया फासिंदियलद्धी, खओवसमिए आयारधरे एवं सूयगडधरे ठाणधरे समवायधरे १० विवाहपण्णत्तिधरे एवं नायाधम्मकहा० उवासगदसा० अंतगडदसा० अणुत्तरोववाइयदसा० पण्हावागरण. खओवसमिए विवागसुयधरे खओवसमिए दिट्ठिवायधरे, खओवसमिए णवपुवी जाव चोदसपुव्वी, खओवसमिए गणी खओवसमिए वायए । से तं खओवसमनिप्फण्णे । से तं खओवसमिएँ । - २४८. से किं तं पारिणामिएँ ? २ दुविहे पण्णत्ते । तंजहा-सादिपारिणा- १५ मिए य १ अणादिपारिणामिए य २। २४९. से किं तं सादिपारिणामिए १ २ + अणेगविहे पण्णत्ते। तं जहा-- जुण्णसुरा जुण्णगुलो जुण्णघयं जुण्णतंदुला चेव । अब्भा य अब्भरुक्खा संझा गंधव्वणगरा य ॥२४॥ १. F - एतच्चिलमध्यवर्तिसूत्रपाठस्थाने एवं सुय-ओहि-मणपजवनाण-मइभन्नाण-सुयअन्नाणविभंगवाण-चक्खु-अचक्खु-ओहिदसण-सम्मदंसण-मिच्छादसण-सम्मामिच्छदसण-सामाइयचरित्तछेओवट्ठावण-परिहार-सुहुमसंपराय० खओवसमिया चरित्ताचरित्तलद्धी खोवसमिया दाण-लाभभोगोवभोग-विरियलद्धी खोवसमिया बालवीरियलद्धी खभोवसमिया पंडियवीरियलद्धी खओवसमिया बालपंडियवीरियलद्धी खभोवसमिया सोइंदियलद्धी जाव फासिंदियलद्धी खोवसमिया यारधरलद्धी जाव दिट्टिवायधरे खोवसमिए नवपुब्वधरे जाव चोहसपुव्वधरे खमोवसमिए गणी वायए। से तं खओवसमनिप्फने। से तं खमोवसमिए नामे इतिरूपः पाठः संवा० वी० प्रतिषु वर्त्तते ॥ २. या आभिणिबोहियभण्णाण खं०॥ ३. मायारधरे जाव खोवसमिते विवागसुतधरे खोवसमिए णवपुव्वी खभोवसमिए दसपुव्वी खओवसमिए चोइस सं०॥ ४ °ए णामे सं० ॥ ५. °ए णामे ? २ दु सं० । °ए भावे? २ दु । संवा० वी०॥ ६. एतचिह्नमध्यवर्ती पाठः खं० सं० जे० वा. नास्ति। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001062
Book TitleNandisutt and Anuogaddaraim
Original Sutra AuthorDevvachak, Aryarakshit
AuthorPunyavijay, Dalsukh Malvania, Amrutlal Bhojak
PublisherMahavir Jain Vidyalay
Publication Year1968
Total Pages764
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, agam_nandisutra, & agam_anuyogdwar
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy