________________
४८
५
१०
१५
२०
नंदसुते सुयनाणोवसंहारो ।
[सु० ११९-२०
णाssसीण कयातिथि ण कयाति ण भविस्सति, भुविं च भवति य भविस्सति य, धुवा णीया सासता अक्खया अव्वया अवट्ठिया णिच्चा, एवामेव दुवालसंगे गणिपिडगे ण कयाइ णाऽऽसी ण कयाइ णत्थि ण कयाइ ण भविस्सति, भुविं च भवति च भविस्सति य, धुवे णिए सासते अक्खए अव्वए अवट्टिए णिच्चे ।
1
११९. से समासओ चउव्विहे पण्णत्ते, तं जहा - दव्वओ खेत्तओ कालओ भावओ । तैत्थ दव्वओ णं सुयणाणी उवउत्ते सव्वदव्वाइं जाणइ पसइ | खेत्तओ णं सुयणाणी उवउत्ते सैव्वं खेत्तं जाणइ पसइ । कालओ णं सुयणाणी उवउत् सव्वं कालं जाणइ पसइ । भावओ णं सुयणाणी उवउत्ते संव्वे भावे जाण पांस |
१२०. अक्खर १ सण्णी २ सम्मं ३ सादीयं ४ खलु सपज्जवसियं ५ च । गमियं ६ अंगपविङ्कं ७ सत्त वि एए सपडिवक्खा ॥ ८३ ॥ आगमसत्थग्गहणं जं बुद्धिगुणेहिं अहिं दिनं । बिंति सुयणाणलंभं तं पुव्वविसारया धीरा ॥ ८४ ॥ सुस्सूसइ १ पडिपुच्छइ २ सुणेइ ३ गिण्हइ ४ य ईहए ५ यवि । तत्तो अपोहए ६ व धारेइ ७ करेइ वा सम्मं ८ ॥ ८५ ॥ मूयं १ हुंकारं २ वा बाढक्कार ३ पडिपुच्छ ४ वीमंसा ५ । तत्तोपसंगपारायणं ६ च परिणिट्ठ ७ सत्तमए ॥ ८६ ॥ सुत्तत्थो खलु पढमो १ बीओ णिज्जुत्तिमीसिओ भणिओ २ । तइओ यरिवसेसो ३ एस विही होइ अणुओगे ॥ ८७ ॥ तं अंगपविङ्कं १४ । से त्तं सुयणाणं । से त्तं परोक्खणाणं ।
॥ से तं गंदी सम्मत्ता ॥
१. ण भवंति ण कयाइ ण भविस्संति, भुविं च भवंति च भविस्संति य, धुवा खं० ल० शु० ॥ २. णीते खं० ल० शु० ॥ ३ तत्थ इति पदं खं० डे० ल० शु० विआनन्द्युद्धरणे ३०० पत्रे नास्ति ॥ ४, ६, ८, १०. ण पासइ हाटीपा० ॥ ५, ७, ९. सव्व खं० विआनन्द्युद्धरणे ३०० पत्रे ॥ ११. अट्ठहिं वि दिट्ठ जे० ल० ॥ १२. आवि खं० । वा वि जे० ल० ॥ १३. या खं० ॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org